इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साइबर क्राइम के मामलों की विवेचना में खामियों पर नाराजगी जताते हुए डीजीपी से जानकारी मांगी है। पूछा है कि साइबर क्राइम के मामलों की जांच के लिए प्रदेश की पुलिस कितनी तैयार है। कोर्ट ने जानना चाहा है कि पुलिस को साइबर क्राइम के मामलों की जांच के लिए ट्रेंड करने को किसी विशेषज्ञ संस्था को जिम्मेदारी दी गई है या साइबर अपराधों की जांच में पुलिस आईटी विशेषज्ञों से सलाह लेती है। साथ ही यह सलाह किस तरह ली जाती है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने एक किशोरी की अश्लील तस्वीरें व वीडियो फेसबुक पर पोस्ट करके उसे बदनाम करने और ब्लैकमेल कर रकम ऐंठने के आरोपी साबू की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान पाया कि पुलिस ने अदालत में जो जानकारी भेजी, उसमें यह नहीं बताया कि किस व्यक्ति ने किशोरी का वीडियो बनाया। जिस डिवाइस से वीडियो बनाया गया उसे जब्त किया गया या नहीं, उस डिवाइस के बारे में अन्य जानकारियां भी नहीं दी गईं।
किस व्यक्ति ने वीडियो और तस्वीरें फेसबुक पर अपलोड कीं और उसे किस तरह प्रसारित किया आदि की जानकारी पुलिस ने नहीं दी थी। कोर्ट ने कहा कि साइबर अपराध के मामलों में यह लगातार देखने में आ रहा है कि पुलिस की ओर से भेजी जा रही जानकारियां पूरी तरह अर्पाप्त हैं। इससे पता चलता है कि साइबर अपराध के मामलों की जांच कर रही पुलिस विवेचना की सही लाइन पकड़ने में सक्षम नहीं है।
विवेचकों को साइबर अपराध की जांच की सही ट्रेनिंग नहीं मिल रही है जबकि वर्तमान समय में साइबर अपराध बहुत तेजी से बढ़ रहा है और इसने कानून व समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। कोर्ट ने डीजीपी को पुलिस को दी जा रही विशेषज्ञ सहायता ट्रेनिंग के बारे में व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर जानकारी देने का निर्देश दिया है।
बिजनौर की 15 वर्षीय एक किशोरी की सहेली व उसके भाइयों साबू, नदीम, मां रुखसाना आदि ने जबरदस्ती उसके अश्लील वीडियो और फोटोग्राफ बनाए। उसके बाद उसे ब्लैकमेल किया जाने लगा। आरोप है कि उक्त परिवार ने किशोरी से लगभग तीन लाख रुपये ऐंठ लिए और वापस मांगने पर उसकी तस्वीरें व वीडियो फेसबुक पर अपलोड कर दिए। इसके कुछ देर बाद सभी तस्वीरें और वीडियो हटा लिए गए लेकिन इस दौरान वह सोशल मीडिया पर वायरल हो गये। पीड़िता के पिता की ओर से आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है।
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