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धर्म-कर्म

प्रकृति की गोद में ऐतिहासिक मंदिर, त्रिशूल और अन्य धातुओं की बनी नाग मूर्ति चढ़ाने की है परम्परा

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में स्थित खज्जियार अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। इस स्थान को खज्जर, खज्जियार या खंजियार भी कहा गया है। इसका नाम खज्जी नाग देवता पर पड़ा है, जिनका देवालय लगभग दो किलोमीटर लंबी और एक किलोमीटर चौड़ी घाटी के प्रवेश द्वार के पास स्थित है।

 

मान्यता है कि इस क्षेत्र की विशाल झील में खज्जी नाग का मूल निवास स्थल था, जिनके प्राचीन देवालय का निर्माण नागवंशी राजाओं ने 12वीं शताब्दी के आसपास कराया था। काष्ठ कला की अनूठी मिसाल यह मंदिर, शिल्प के दृष्टिकोण से बेमिसाल है। मंदिर के प्रवेश द्वार के पास ही हिडिंबा देवी मंदिर का दर्शन किया जा सकता है। बगल में शिवशंकर का प्राचीन देवालय भी लकड़ी से ही निर्मित है।

कथा है कि सदियों पहले चंबा जिले में जब राणे हुआ करते थे, उसी समय मिली गांव के सामने पहाड़ पर जलती हुई रोशनी दिखाई पड़ी। खजाना समझकर उन्होंने उसे जैसे ही वहां खुदाई की, चार नाग देवता प्रकट हुए। चारों को पालकी में डालकर वहां से लाया गया। आगे सुकरेही नामक स्थान पर पालकी इतनी भारी हो गई कि उसे नीचे रखना पड़ा। तब चारों निकल कर अलग-अलग हो गए और चारों नधूंई, जमुहार, खज्जियार और चुवाड़ी में जाकर बस गए। उसमें खज्जियार, जो पहले सिद्ध बाबा का स्थान था, वहीं खज्जी नाग के रहने के कारण उस पौराणिक स्थान ‘पूंपर’ को खज्जियार कहा जाने लगा।

 

यहां मनौती के रूप में त्रिशूल और विभिन्न धातुओं की बनी नाग मूर्ति चढ़ाने की परम्परा है। मंदिर के पुजारी अमरचंद जी बताते हैं कि यह मनौती का बड़ा ही जागृत स्थान है। स्थानीय लोग कोई भी शुभ काम करने के पहले खज्जी नाग के दरबार में हाजिरी अवश्य लगाते हैं।

कैसे पहुंचें : चंबा से खज्जियार की दूरी 24 किलोमीटर और डलहौजी से 20 किलोमीटर है। पठानकोट सबसे समीप का रेलवे स्टेशन है, जहांसे बस या टैक्सी से बनीखेत, डलहौजी होते हुए खज्जियार पहुंचा जा सकता है। यहां हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड के समीपवर्ती नगरों से आवागमन सुविधा सहज उपलब्ध है।

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