हिमाचल प्रदेश में तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हार ने भाजपा में हलचल पैदा कर दी है। मंगलवार को पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे कृपाल परमार ने इस्तीफा दे दिया था, वहीं अब राज्य कार्यकारिणी के सदस्य और सिरमौर जिले के अध्यक्ष पवन गुप्ता ने भी इस्तीफा दिया है। अपने इस फैसले के लिए पवन गुप्ता ने सीएम दफ्तर में तैनात एक अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया है। गुप्ता के इस्तीफा देने के अंदाज से भी पार्टी की किरकिरी हुआ है। पवन गुप्ता ने सोशल मीडिया पर इस्तीफा अपलोड किया और कहा कि वह बीते 6 महीने से उत्पीड़न का शिकार हैं। उपचुनावों में हार से उबरने की रणनीति बनाने में जुटी भाजपा के लिए यह करारा झटका है और इससे अंतर्कलह उजागर हो गई है। जो एक साल बाद ही होने वाले विधानसभा चुनावों के लिहाज अच्छा संकेत नहीं है।
इस बीच शिमला में भाजपा की तीन दिवसीय मंथन बैठक बुधवार को शुरू हुई है, जिसमें हार के कारणों पर चर्चा हो रही है। भाजपा सूत्रों के मुताबिक मीटिंग में उम्मीदवारों के अहंकार, गलत व्यक्ति को टिकट मिलना, मंडी में वीरभद्र परिवार के प्रति सहानुभूति और कुछ संगठन के लोगों की निष्क्रियता जैसे कारणों से उपचुनाव में हार का कारण बताया गया है। यही नहीं पार्टी अब राज्य सरकार की कैबिनेट में फेरबदल से लेकर संगठन तक में तब्दीली पर विचार कर रही है। इस बारे में डिटेल रिपोर्ट तैयार की जा रही है और उसे हाईकमान को भेजा जाएगा। इसके बाद ही कोई फैसला होगा, लेकिन किसी भी तरह के बदलाव से फिलहाल इनकार नहीं किया जा रहा है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब एक दर्जन निगमों के चेयरमैन को हटाया जा सकता है। इसके अलावा पार्टी की राज्य कार्यकारिणी के कई महासचिव और उपाध्यक्ष भी निशाने पर हैं। बुधवार को शुरू हुई बैठक में राज्य के प्रभारी अविनाश राज्य खन्ना, पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल, मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप शामिल हैं। जुब्बल कोटखाई सीट पर चेतन बरागटा की बगावत को न संभाल पाने का आरोप भी कुछ नेताओं पर लग रहा है। इसके अलावा फतेहपुर विधानसभा सीट से पूर्व सांसद कृपाल परमार को टिकट न मिलना भी एक वजह माना जा रहा है। बता दें कि कृपाल परमार ने प्रदेश उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है। यही नहीं परमार ने कहा कि हार की वजहों को लेकर वह कोई इनपुट नहीं दे पाएंगे।
दरअसल हिमाचल प्रदेश में यूपी, बिहार जैसे राज्यों की तरह बहुत ज्यादा सीटें नहीं है। महज 68 सीटों वाली विधानसभा में एक साथ तीन पर हार का सामना करना बड़ा संदेश है। इसके अलावा छोटा राज्य होने के चलते तीन सीटों पर हार की हवा दूसरे क्षेत्रों में फैलने की आशंका ज्यादा होती है। ऐसे में भाजपा हार से ज्यादा उससे बनी धारणा को लेकर चिंतित है। यूं भी प्रदेश में हर 5 साल पर सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है। ऐसे में भाजपा इस उपचुनाव की हार को गंभीरता से ले रही है ताकि उसका रिपीट मिशन किसी भी तरह फेल न हो सके।
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