धरती के नजदीक और अपने सौर मंडल में एक ऐसा ग्रह भी है जहां पर जीवन के आसार दिखाई दिए हैं. वह भी उस ग्रह के बादलों में. हैरानी वाली बात ये है कि इस ग्रह को आप अपनी खुली आंखों से रात में देख सकते हैं. इतना ही नहीं इस ग्रह पर 37 सक्रिय ज्वालामुखी भी हैं जो दिन-रात फट रहे हैं. ऐसे में उस ग्रह के बादलों में जीवन के अंश खोजना एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है.
इस ग्रह का नाम है शुक्र (Venus). इस ग्रह के घने बादलों में वैज्ञानिकों को जीवन के अंश दिखाई दिए हैं. वैज्ञानिकों ने इन बादलों में एक ऐसे गैस की खोज की है जो धरती पर जीवन की उत्पत्ति से संबंधित हैं. इस गैस का नाम है फॉस्फीन (Phosphine). हालांकि, शुक्र ग्रह के वातावरण में किसी जीवन का होना लगभग असंभव है ऐसे में फॉस्फीन गैस का मिलना अपने आप में एक चौंकाने वाली घटना है.
मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) की एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट यानी अंतरिक्ष जीव विज्ञानी सारा सीगर ने बताया कि हमारे इस खोज की रिपोर्ट नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित हुई है. हमने उसमें लिखा है कि शुक्र ग्रह के वातावरण में धरती से अलग प्रकार के जीवन की संभावना है. सीगर ने बताया कि हम यह दावा नहीं करते कि इस ग्रह पर जीवन है. लेकिन जीवन की संभावना हो सकती है क्योंकि वहां एक खास गैस मिली है जो जीवों की वजह से उत्सर्जित होती है.
आपको बता दें कि फॉस्फीन (Phosphine) गैस के कण पिरामिड के आकार के होते हैं. इसमें फॉस्फोरस का इकलौता कण ऊपर और नीचे तीन हाइड्रोजन के कण होते हैं. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस पथरीले ग्रह पर इस गैस का निर्माण कैसे हुआ. क्योंकि फॉस्फोरस और हाइड्रोजन के कणों को जुड़ने के लिए काफी ज्यादा मात्रा में दबाव और तापमान चाहिए. बादलों की ये तस्वीरें यूरोपियन साउदर्न लेबोरेट्री (ESO) और अलमा टेलीस्कोप (ALMA) टेलीस्कोप से ली गई हैं.
आपको बता दें कि शुक्र ग्रह पर 37 ज्वालामुखी सक्रिय हैं. ये हाल ही में फटे भी थे. इनमें से कुछ थोड़े-थोड़े अंतर पर अब भी फट रहे हैं. यह ग्रह भौगोलिक रूप से बेहद अस्थिर है. यह ग्रह ज्यादा देर तक शांत नहीं रह पाता. इसमें अक्सर किसी न किसी तरह की गतिविधि होती रहती है. यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के वैज्ञानिकों ने इन सक्रिय ज्वालामुखियों की खोज की थी.
शुक्र ग्रह पर हाल ही में हुए ज्वालामुखीय विस्फोटों की वजह से सतह पर कोरोने या कोरोना (Coronae/Corona) जैसे ढांचे बन गए. कोरोना जैसे ढांचों का मतलब होता है कि गोल घेरे जो बेहद गहरे और बड़े हैं. इन घेरों की गहराई शुक्र ग्रह के काफी अंदर तक है. हाल ही में इन घेरों से ही ज्वालामुखीय लावा बहकर ऊपर आया था. अभी इनसे गर्म गैस निकल रही है. अभी तक ये माना जाता था कि शुक्र ग्रह की टेक्टोनिक प्लेट्स शांत हैं. लेकिन ऐसा नहीं है, वहां भी इन ज्वालामुखीय विस्फोटों की वजह भूकंप आ रहे हैं. टेक्टोनिक प्लेट्स हिल रही हैं.
पहले यह माना जाता था कि शुक्र ग्रह के एक्टिव कोरोना से ही ज्वालामुखीय विस्फोट होता आया है लेकिन अब ऐसा नहीं है. साल 1990 से लेकर अब तक 133 कोरोना की जांच की गई है. इनमें से 37 कोरोना अब भी सक्रिय हैं. इन कोरोना गड्ढों से पिछले 20 से 30 लाख साल ज्वालामुखीय विस्फोट हो रहा है. ज्वालामुखी लावा के बहने के लिए किसी भी ग्रह में कोरोना गड्ढे जरूरी होते हैं. ये 37 ज्वालामुखी ज्यादातर शुक्र ग्रह के दक्षिणी गोलार्द्ध पर स्थित हैं. इनमें सबसे बड़ा कोरोना जिसे अर्टेमिस कहते हैं, वो 2100 किलोमीटर व्यास का है.
Comments
Leave Comments