उत्तर प्रदेश के राज्यसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने 8 कैंडिडेट के नाम का ऐलान कर दिया है. बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव के जरिए 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के राजनीतिक और जातीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है. बीजेपी ने अपने कोर वोटबैंक का खास ख्याल रखा है, जिसके तहत ब्राह्मण, राजपूत और ओबीसी समुदाय को बराबर की हिस्सेदारी देने के साथ-साथ दलित और सिख समुदाय को राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है. इस तरह से बीजेपी ने आगामी चुनाव के लिए सूबे में अपनी सोशल इंजीनिरिंग का फॉर्मूला बनाने का दांव चला है.
राज्यसभा चुनाव के लिए बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति ने सोमवार देर रात 8 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की. इसमें केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, अरुण सिंह, पूर्व डीजीपी बृजलाल, नीरज शेखर, हरिद्वार दुबे, गीता शाक्य, बीएल शर्मा और सीमा द्विवेदी को उम्मीदवार बनाया गया. बीजेपी ने दो राजपूत, दो ओबीसी, दो ब्राह्मण, एक दलित और एक सिख समुदाय के प्रत्याशी उतारा गया है, जो मंगलवार को नामांकन करेंगे. बीजेपी ने बृजलाल, गीता शाक्य और बीएल वर्मा जैसे नये चेहरों को राज्यसभा में भेजने का फैसला किया है.
ब्राह्मण समुदाय को साधने का दांव
उत्तर प्रदेश के तमाम विपक्षी दलों द्वारा योगी सरकार के खिलाफ ब्राह्मण विरोधी सुर बुलंद किए जा रहे थे. ऐसे में सूबे के करीब 10 फीसदी ब्राह्मणों को बीजेपी साधने के लिए दो राज्यसभा प्रत्याशी दिए हैं. इसमे पूर्व मंत्री हरिद्वार दुबे और पूर्व विधायक सीमा द्विवेदी का नाम शामिल है. दुबे यूपी में कल्याण सरकार में वित्त राज्य मंत्री रहे हैं और उनकी गिनती आगरा के वरिष्ठ भाजपा नेताओं में होती है. हालांकि, मूलरूप से वे बलिया के रहने वाले हैं और सीतापुर, अयोध्या और शाहजहांपुर में आरएसएस के जिला प्रचारक रहे हैं. वहीं, सीमा द्विवेदी जौनपुर के मुंगरा बादशाहपुर से दो बार विधायक रह चुकी हैं. इस तरह से बीजेपी ने अपने कोर वोटबैंक ब्राह्मणों की नाराजगी दूर करने का दांव चला है.
ठाकुर समुदाय से दो प्रत्याशी
उत्तर प्रदेश में योगी के सीएम बनने के बाद से राजपूत मतदाता बीजेपी का मजबूत वोटबैंक माना जा रहा है. ऐसे में बीजेपी ने सूबे के 7 फीसदी राजपूत मतदाताओं को अपने साथ जोड़े रखने के लिए दो राज्यसभा प्रत्याशी उतारे हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री, महासचिव तथा केंद्रीय कार्यालय प्रभारी अरुण सिंह के साथ पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर को फिर से राज्यसभा में भेजने का फैसला लिया है. नीरज शेखर ने पिछले साल सपा छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था.
हालांकि, बीजेपी ने डॉ. संजय सिंह को राज्यसभा नहीं भेजा है, क्योंकि सूबे में जिस तरह से ठाकुरों को लेकर बीजेपी निशाने पर है. ऐसे में दो से ज्यादा प्रत्याशी बनाने पर सवाल खड़े होते, इसीलिए बीजेपी ने ब्राह्मण के बराबर राजपूतों को भागीदारी दी है.
ओबीसी समुदाय को साधने का दांव
बीजेपी ने 2022 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए राज्यसभा चुनाव के पिछड़ा समुदाय को भी साधकर रखने का दांव चला है. बीजेपी ने ओबीसी समुदाय से दो राज्यसभा कैंडिडेट बनाए हैं. औरैया की जुझारू नेता गीता शाक्य के जरिए पार्टी नेतृत्व ने महिला और पिछड़ा कोटा पूरा करने के साथ बुंदेलखंड को भी प्रतिनिधित्व प्रदान किया है. ऐसे ही लोध समुदाय से आने वाले बीएल वर्मा को प्रत्याशी बनाया गया है. वर्मा पूर्व सीएम कल्याण सिंह के करीबी माने जाते हैं और यूपी में लोध समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है.
गैर-यादव पिछड़े वोटरों के सहारे ही बीजेपी 2017 में प्रचंड जीत के साथ सत्ता में आई थी, जिसे ध्यान में रखते हुए राजनीतिक समीकरण बनाने की कवायद की गई है. अगस्त में राज्यसभा के उपचुनाव में मल्लाह समुदाय से आने वाले जय प्रकाश निषाद को भेजा था. इस तरह से बीजेपी ओबीसी की तमाम जातियों का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व देकर उन्हें अपने साथ मजबूती से जोड़े रखने की कोशिश कर रही है. सूबे में ओबीसी मतदाता काफी निर्णयक भूमिका में हैं, जो पिछले तीन दशक से सूबे की सियासी तकदीर का फैसला करते आ रहे हैं.
बृजलाल के जरिए दलितों को संदेश
सेवानिवृत डीजीपी बृजलाल दलित समुदाय से आते हैं और मायावती के करीबी माने जाते थे, लेकिन उन्होंने अपना सियासी सफर बसपा की बजाय बीजेपी के साथ शुरू किया. हाल ही में हाथरस मामले में जिस तरह से विपक्ष ने बीजेपी को दलित राजनीति के नाम पर घेरने की कोशिश की थी, ऐसे में पार्टी ने बृजलाल को राज्यसभा भेजकर दलित समुदाय को सियासी संदेश देने की कोशिश की है.
सूबे में 22 फीसदी दलित मतदाता हैं, जिनके सहारे मायावती यूपी में चार बार सीएम बन चुकी हैं. हालांकि, दलित मतदाताओं को साधने के लिए सपा से लेकर कांग्रेस तक लगातार कवायद कर रही है. ऐसे में बीजेपी ने अब बड़ा दांव चला है. बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी को भी राज्यसभा का प्रत्याशी बनाया है, जो सिख समुदाय से आते हैं. सूबे में करीब 2 फीसदी सिख मतदाता हैं और इतनी ही तादाद पंजाबी वोटर्स की है, जिन्हें बीजेपी हर हाल में अपने साथ साधकर रखना चाहती है.
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