अक्षय कुमार और कियारा आडवाणी स्टारर फिल्म लक्ष्मी को लेकर पूरे समय तमाम तरह की बाते कही जाती रही थीं. किसी ने कहा कि लक्ष्मी फिल्म के जरिए धार्मिक भावनाओं को आहत किया गया है तो किसी ने फिल्म के जरिए लव जिहाद फैलाए जाने की बात कही. अब सबसे पहले ये साफ कर दें कि लक्ष्मी में ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया है. किसी का कोई अपमान नहीं हुआ है. अब जब ऐसा कोई विवाद है ही नहीं तो सीधे फिल्म 'लक्ष्मी' पर अपना फोकस जमाते हैं.
कहानी
आसिफ ( अक्षय कुमार) भूत-प्रेत में विश्वास नहीं रखता है. विज्ञान में भरोसा जताने वाला आसिफ दूसरे लोगों को भी जागरुक करने का काम करता है. आसिफ काफी मॉर्डन सोच वाला इंसान है जो जाति-धर्म को नहीं मानता है. आसिफ रश्मि ( कियारा आडवाणी) से प्यार करता है. क्योंकि आसिफ मुसलमान है और रश्मि हिंदू तो परिवार को ये रिश्ता रास नहीं आता है. दोनों भाग कर शादी कर लेते हैं. लेकिन फिर रश्मि की मां पूरे तीन साल बाद अपनी बेटी को फोन मिला घर आने को कह देती है. अब यहीं से कहानी में आना शुरू होते हैं ट्विस्ट. आसिफ, रश्मि संग उसके मायके पहुंच जाता है. जिस कॉलोनी में रश्मि का परिवार रहता है, उसके एक प्लॉट में भूत-प्रेत का साया बताया जाता है.
लेकिन आसिफ हिम्मत दिखाते हुए उस प्लॉट में चला जाता है और 'लक्ष्मी' की आत्मा उसे पकड़ लेती है. अब आसिफ के शरीर में बसी लक्ष्मी उससे क्या-क्या कारनामे करवाती है, आगे की कहानी उस ट्रैक पर बढ़ती दिखती है. ट्रेलर में आपने उन कारनामों की झलक भी देख ही रखी है. ऐसे में क्या आसिफ, लक्ष्मी से मुक्त हो पाता है? लक्ष्मी का असल उदेश्य क्या है? लक्ष्मी को किस बात का इतना गुस्सा है? डायरेक्टर राघव लॉरेंस की लक्ष्मी देख इन सवालों के जवाब मिल जाएंगे.
लक्ष्मी देखने से पहले आपको अपने लॉजिक को पीछे छोड़ना बहुत जरूरी है. अगर आप इस फिल्म के साथ 'किंतु-परंतु' लगाना शुरू कर देंगे, तो मजा किरकिरा होना तय है. ऐसे में लक्ष्मी को सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन के लिहाज से देखें. अगर आप ऐसा करने में कामयाब रहते हैं तो फिल्म देख आप निराश नहीं होंगे. फिल्म पूरे 2 घंटे 20 मिनट तक आपके मनोरंजन का ख्याल रखेगी. ये कभी आपको गुदगुदाएगी तो कभी डराएगी. हां ये जरूर है कि फिल्म अपने असल मुद्दे तक पहुंचने के लिए काफी टाइम लगा देती है.
हैरानी की बात ये रही है कि हर कोई अक्षय का किन्नर लुक देखने के लिए बेकरार होगा, लेकिन उनका वो अंदाज आपको इंटरवल के बाद ही मिलने वाला है. तो पेशेंस आपको जरूरत से ज्यादा रखना पड़ेगा.
कैसी रही एक्टिंग?
लक्ष्मी का एक्टिंग डिपार्टमेंट धमाकेदार कहा जाएगा. अक्षय कुमार इस फिल्म में अलग ही फॉर्म में नजर आ रहे हैं. उनका लुक तो चर्चा में था ही, लेकिन जिस शिद्दत से खिलाड़ी कुमार ने हर इमोशन बयां किए हैं, वो देख आप भी उनकी तारीफ करते नहीं थकेंगे. इस फिल्म में अक्षय का डांस भी आपको लंबे समय तक याद रहने वाला है. उनका बम भोले गाना सभी को झूमने पर मजबूर करेगा. अक्षय की पत्नी के रोल में कियारा का काम भी बढ़िया रहा है. फिल्म में उन्हें ज्यादा कुछ तो करने को नहीं दिया गया है, लेकिन अक्षय को उन्होंने बेहतरीन अंदाज में सपोर्ट किया है.
रश्मि के पिता के रोल में राजेश शर्मा भी काफी नेचुरल लगे हैं. उनकी अपनी एक कॉमिक टाइमिंग हैं जो हर किरदार के साथ फिट बैठ जाती है. वहीं रश्मि की मां के किरदार में आएशा रजा मिश्रा ने भी सभी को हंसने पर मजबूर किया है. फिल्म में आएशा की अश्विनी कलेसकर संग बढ़िया जुगलबंदी देखने को मिली है.
फिल्म में शरद केलकर का कैमियो भी रखा गया है. उनके किरदार के बारे में अभी ज्यादा कुछ नहीं बता रहें हैं, लेकिन इतना तय कि उनका काम जानदार और शानदार रहा है. अगर फिल्म देखने के बाद आपको उनकी परफॉर्मेंस बेस्ट भी लगने लगे, तो हैरानी नहीं होगी.
लक्ष्मी की कमजोर कड़ी
लक्ष्मी का निर्देशन राघव लॉरेंस ने किया है जिन्होंने ऑरिजनल फिल्म कंचना को भी डायरेक्ट किया था. लेकिन इस फिल्म को जिस वजह से इतना प्रमोट किया जा रहा था, वो संदेश सही अंदाज में दर्शकों तक नहीं पहुंच पाया है. फिल्म को लेकर कहा गया था कि ये देखने के बाद किन्नरों के प्रति लोगों का नजरिया बदलेगा. अब नजरिया कितना बदला ये बताना तो मुश्किल है, लेकिन क्या उनके संघर्ष को फिल्म में सही अंदाज में दिखाया गया है, तो जवाब है नहीं. फिल्म में एक किन्नर के 'बदले' की कहानी दिखाई गई है. किन्नरों का संघर्ष दिखाने के नाम पर सिर्फ 10 मिनट की एंड में खानापूर्ति की गई है. फिल्म का मूल संदेश कही गायब दिखता है.
वैसे डायरेक्ट को इतना क्रेडिट जरूर दिया जा सकता है कि फिल्म का क्लाइमेक्स अच्छे से फिल्माया गया है. अक्षय के रौद्र रूप से लेकर VFX का इस्तेमाल करने तक, क्लाइमेक्स पर काफी मेहनत की गई है. ऐसे में दिवाली के मौके पर रिलीज हुई अक्षय कुमार की लक्ष्मी सिर्फ और सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिहाज से एक बार देखी जा सकती है. लॉजिक और संदेश की उम्मीद लगाना फिजूल होगा.
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