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भारत

केदारनाथ से भी बड़ी आपदा का खतरा, सामने आई ये रिपोर्ट

क्या हो अगर लद्दाख में जमी बर्फ की झीलें और ग्लेशियर पिघल जाएं? अगर ऐसा हुआ तो भारत के उत्तरी इलाकों में भयावह प्राकृतिक आपदा का मंजर देखने को मिल सकता है. यह केदारनाथ में आई आपदा से कई गुना ज्यादा भयावह हो सकता है. हाल ही में एक अध्ययन में यह खुलासा किया गया है कि जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है. इससे लद्दाख के ग्लेशियरों और बर्फ की झीलों को खतरा पैदा हो गया है. (फोटोः गेटी)

Ladakh melting glacier could lead big natural disaster

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लद्दाख दुनिया के सबसे ऊंचे इलाकों में से एक है. यहां पर टेंपरेचर बेहद कम रहता है. सर्दी के मौसम में पारा माइनस 16 तक चला जाता है. कुछ इलाकों में तो और भी नीचे. यहां पर पानी जमकर बर्फ बन जाता है. हालांकि, तेजी से बढ़ रहे तापमान की वजह से लद्दाख के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. ठीक इसी तरह यहां पर मौजूद बर्फ की झीलें भी पिघल रही हैं. अगर झीलों में बर्फ पिघली तो हिमालय क्षेत्र में बाढ़ आ सकती है. (फोटोः गेटी)

Ladakh melting glacier could lead big natural disaster

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साउथ एशिया इंस्टीट्यूट और हीडलबर्ग सेंटर फॉर द एनवॉयरमेंट ऑफ रुपर्टो कैरोला के रिसर्चर्स ने लद्दाख की एक बर्फीली झील के टूटने पर शोध किया. इसकी वजह से बाढ़ आई थी. जियोलॉजिस्ट प्रोफेसर मार्कस नुसरेर ने कहा कि हमनें लद्दाख के ग्लेशियरों पर रिसर्च करने के लिए सैटेलाइट इमेजेस का उपयोग किया. हमने इस अध्ययन के लिए 50 साल के समय अंतराल में लद्दाख की बर्फीली झीलों और ग्लेशियरों में आए बदलावों के आंकड़े जुटाए. (फोटोः गेटी)

 

Ladakh melting glacier could lead big natural disaster

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प्रो. नुसरेर ने चेताया कि इन बर्फीली झीलों और ग्लेशियर के बर्फ अगर तेजी से पिघले तो हिमालय के निचले इलाकों में भयावह बाढ़ आ सकती है. भारत ऐसी भयानक बाढ़ केदारनाथ हादसे के दौरान झेल चुका है. ये ग्लेशियर और झीलें कभी फट सकते हैं, ऐसे में अचानक आने वाली बाढ़ से बचना बेहद मुश्किल हो जाएगा. इसलिए जरूरी है कि भारत समेत सभी एशियाई देश ग्लोबल वार्मिंग में कमी लाने का प्रयास करें. (फोटोः गेटी)

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प्रोफेसर नुसरेर ने बताया कि हमारे अध्ययन से यह पता चलेगा कि भविष्य में ऐसे हादसों से कैसे बचा जाए. या फिर ऐसी प्राकृतिक आपदाओं को कैसे टाला जाए. ग्लेशियरों के टूटने और झीलों के फटने से होने वाले बाढ़ को ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड्स (GLOFS) कहा जाता है. यह अध्ययन नेचुरल हैज़ार्डस नाम की साइंस मैगजीन में प्रकाशित हुआ है. (फोटोः गेटी)

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सिर्फ भारत के लद्दाख क्षेत्र के ही ग्लेशियर नहीं पिघल रहे हैं. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनियाभर के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. प्रो. नुसरेर की टीम ने अगस्त 2014 में लद्दाख में आई एक बर्फीली बाढ़ का अध्ययन किया. यह बाढ़ एक बर्फीली झील के फटने की वजह से आई थी. इसने सैकड़ों घरों, खेतों और पुलों को खत्म कर दिया था. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि झील के फटने से थोड़ा पहले ही बारिश के मौसम में पानी की मात्रा बढ़ गई थी. (फोटोः गेटी)

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अगस्त 2014 में जिस बर्फीली झील के फटने की वजह से बाढ़ आई थी वह करीब 5300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. अब आप सोचिए कि इतनी ऊंचाई से जब पानी का तेज बहाव नीचे की ओर आएगा तो कितनी तबाही मचाएगा. इस तरह की घटना की कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. इतनी ऊंचाई पर जब कोई झील ज्यादा वजन से फटती है तो उससे भारी मात्रा में पानी नीचे की ओर गिरता है. (फोटोः गेटी)

 

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आइए जानते हैं कि आखिर ऐसे होता क्यों है? जब भी कोई ग्लेशियर पिघलता है तो उसका पानी इन झीलों के जलस्तर को बढ़ाता है. पहले से झील में जमा बर्फ के ओवरफ्लो होने पर झील फट जाती है. या ऐसे कि उसका कोई एक किनारा टूट जाता है. जिससे पानी तेजी से नीचे की ओर आने लगता है. इसका बहाव इतना तेज होता है कि कई क्विंटल वजनी पत्थरों को भी तेजी से नीचे की ओर बहा ले जाता है. पानी और पत्थर के तेज बहाव के सामने जो भी आता है वह नष्ट हो जाता है. (फोटोः गेटी)

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अगर दुनिया भर में तापमान को दो डिग्री सेल्सियस के नीचे रोका नहीं गया तो हिमालय पर स्थित ग्लेशियरों के पिघलते की घटना में तेजी आएगी. इसकी वजह से पहाड़ी इलाकों में फ्लैश फ्लड यानी अचानक बा़ढ़ आएगी. साथ ही साथ समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा. यह एक बड़ी तबाही के रूप में इंसानों के सामने आकर खड़ी हो जाएगी. इसलिए जरूरी है कि दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहे तापमान को कम किया जाए. (फोटोः गेटी)

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इनसे बचने के लिए भी प्रो. नुसरेर ने कुछ तरीके बताए हैं. पहला है तापमान को कम करना. दूसरा है संवेदनशील स्थानों की पहचान करके वहां ऐसी दीवारें बनाना जिससे बाढ़ रिहायशी इलाकों और खेतों को नुकसान न पहुंचाए. या फिर ऐसे रास्ते बना देना जिससे की झीलों का पानी इंसानी इलाकों से न होकर किसी और रास्ते से सुरक्षित तरीके से निकल जाए. (फोटोः गेटी)

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