logo

  • 21
    10:41 pm
  • 10:41 pm
logo Media 24X7 News
news-details
जम्मू-कश्मीर

जम्मू कश्मीर: डेढ़ साल से जेल में बंद उन लोगों की कहानी जिनकी सुनवाई नहीं हुई

5 अगस्त 2019 में जब जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार ने ख़त्म किया था, उस वक्त हज़ारों लोगों को हिरासत में लिया गया था.

इस बात को अब डेढ़ साल होने आए हैं. जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया था उनमें से कइयों पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं और वो अब भी जेलों में बंद हैं.

हाल में भारत सरकार ने देश की संसद को बताया कि पब्लिक सेफ्टी एक्ट यानी सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार 180 लोग फिलहाल जेलों में बंद हैं.

सरकार ने ये भी कहा कि 1 अगस्त 2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर में पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत 613 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

कहानी आशिक़ अहमद राठेर की

30 साल के धर्म गुरू आशिक़ अहमद राठेर पुलवामा ज़िले के कुंजपुरा गांव में रहते हैं. जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के फ़ैसले से दो दिन पहले सुरक्षाबलों ने उन्हें हिरासत में लिया था.

गिरफ्तारी के कुछ दिनों बाद आशिक़ अहमद पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत आरोप लगाए गए और उन्हें आगरा सेंट्रल जेल शिफ्ट कर दिया गया. फिलहाल वो आगरा जेल में ही बंद हैं.

आशिक़ अहमद के पिता ग़ुलाम नबी राठेर बताते हैं कि जब रात के वक्त सुरक्षाबल उनके बेटे को गिरफ्तार करने पहुंचे थे, तब परिवार के सभी सदस्य सोए हुए थे.

वो कहते हैं, "वो घर की बाउंड्री वॉल के भीतर थे और ज़ोर-ज़ोर से बात कर रहे थे. हमारी नींद टूट गई. हमने दरवाज़ा खोला. मेरा बेटा आशिक़ भी अपने कमरे से बाहर आ गया. जब सुरक्षाबलों ने आशिक़ को देखा तो उन्होंने उसे पकड़ लिया और अपने साथ ले गए. हमने इसका विरोध भी किया लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी. उन्होंने आंसू गैस के गोले चलाए और हमें तितर-बितर करने की कोशिश की."

अगले दिन परिवार के सदस्य स्थानीय पुलिस स्टेशन पहुंचे और उन्होंने आशिक़ अहमद से मुलाक़ात की.

ग़ुलाम नबी बताते हैं, "दो दिन बाद हमें पता चला कि आशिक़ को आगरा सेंट्रल जेल ले जाया गया है. एक महीने बाद हम आगरा जेल गए लेकिन वहां अधिकारियों ने हमें हमारे बेटे से मुलाक़ात नहीं करने दी. जेल अधिकारियों ने कहा कि हमें स्थानीय पुलिस अधिकारियों से इसके लिए लिखित में परमिशन लेनी होगी. हम चार दिन आगरा में रहे और एक मुलाक़ात के लिए अधिकारियों से गुज़ारिश करते रहे, लेकिन हमारी किसी ने न सुनी."

आशिक़ अहमद राठेर के माता पिता

ग़ुलाम नबी अपने बेटे से मुलाक़ात किए बग़ैर कश्मीर लौट आए. इसके बाद बेटे को देखने की उम्मीद में वो एक और बार काफी पैसा खर्च कर आगरा गए. उसके बाद से बुरे मौसम, बर्फबारी और कोरोना महामारी के कारण लगाए गए प्रतिबंधों के कारण वो आगरा नहीं जा सके हैं.

'मैंने अपने बेटे को नहीं देखा'

आशिक़ अहमद के छोटे भाई आदिल अहमद कहते हैं, "कोरोना महामारी के कारण हम डर गए. हम सोचते रहते थे कि अगर आश़िक को कुछ हो गया तो हम क्या करेंगे? हम एक डेस्क से दूसरे डेस्क, एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी से मिलते रहे और कोशिश करते रहे लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला."

आशिक़ अहमद की मां राजा बेग़म कहती हैं कि वो जुमे के रोज़ पंपोर की जामिया मस्जिद में नमाज़ पढ़ाया करते थे और सप्ताह के बाक़ी दिन कुंजपुरा गांव की मस्जिद में जाया करते थे.

रोते-रोते वो बीबीसी को बताती हैं, "गिरफ्तार होने के बाद से मैंने अपने बेटे को नहीं देखा है. कोई भी मां आपको बता देगी कि महीनों तक अपने बेटे को नहीं देख पाना कितना तकलीफ़देह होता है. मैं एक मां हूं और मैं बेटे के लिए मां के प्यार की कीमत जानती हूं. मेरी उम्र हो गई है और मेरे लिए दूर आगरा जाना इतना आसान नहीं है."

"डेढ़ साल के बाद मैंने हाल में अपने बेटे फ़ोन पर बात की है. उससे बस एक मिनट ही बात हो पाई. मैं दरवाज़े की तरफ देखती रहती हूं और मुझे लगता है कि मेरा बेटा आ जाएगा. सरकार से मैं दर्ख़्वास्त करना चाहती हूं कि वो मेरे बेटे को छोड़ दे."

आशिक़ अहमद की पत्नी ग़ज़ाला कहती हैं कि जब से उनके पति पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगाया गया है उनकी ज़िदगी नरक के समान हो गई है.

वो कहती हैं, "मेरे दर्द की कोई कल्पना नहीं कर सकता. मैं असहाय हो गई हूं. मेरे लिए हर एक दिन एक नया बोझ होता है. मैं शांति से अपना जीवन कैसे गुज़ारूं जब मेरे पति जेल में हैं. मेरी दो साल की बच्ची अपने पिता को याद करती रहती है और बार-बार बाबा-बाबा कहती रहती है."

वीडियो कैप्शनचेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.

आशिक़ अहमद ने उर्दू भाषा में एमए और बीएड की पढ़ाई की है. ग़ज़ाला अपने पति पर पुलिस द्वारा लगाए सभी आरोपों से इनकार करती हैं और कहती हैं कि वो अपने पति को बहुत अच्छी तरह जानती हैं.

वो कहती हैं, "मैंने कभी उन्हें ऐसा कोई गैर-क़ानूनी काम करते या फिर इस तरह की गतिविधियों में शामिल होते नहीं देखा. वो एक बेहद सामान्य जीवन जीने वाले व्यक्ति थे. अगर इसके बावजूद सरकार को लगता है कि उन्होंने कुछ ग़लत किया है तो सरकार मेरी बेटी और मेरा दुख समझे और उन्हें माफ़ कर दे, उन्हें रिहा कर दे."

पुलिस अधीक्षक ने पुलवामा ज़िला मजिस्ट्रेट के समक्ष जो डोज़ियर पेश किया है उसके अनुसार आशिक़ अहमद स्थानीय युवाओं को चरमपंथी गुटों में शामिल होने के लिए उकसा रहे थे.

पुलवामा ज़िला मजिस्ट्रेट की तरफ से पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगाने को लेकर जो आदेश जारी किया गया है उसके अनुसार "आशिक़ अहमद का आज़ाद रहना राज्य की सुरक्षा के लिए ख़तरा हो सकता है क्योंकि प्रदेश का माहौल पहले ही तनावपूर्ण है."

आदिल अहमद बताते हैं कि आश़िक को इससे पहले भी दो बार हिरासत में लिया गया है लेकिन उनके ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था. हालांकि पुलिस द्वारा 2016 में दर्ज की गई दो एफ़आईआर में आशिक़ अहमद के नाम का ज़िक्र है.

वीडियो कैप्शनचेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.

पोस्ट YouTube समाप्त, 2

पब्लिक सेफ्टी एक्ट एक तरह का सुरक्षात्मक क़ानून है जिसके तहत प्रशासन किसी व्यक्ति को 'सार्वजनिक शांति बनाए रखने हेतु' एक साल बिना ट्रायल के और 'राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में' दो साल बिना ट्रायल के गिरफ्तार कर रख सकता है.

आशिक़ अहमद उन सैकड़ों लोगों में से एक हैं जो जेल में कैद हैं और जम्मू कश्मीर में अपने घर से दूर हैं.

देश के भीतर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना के बावजूद भारत सरकार का कहना है कि इलाक़े में हाल के दिनों में चरमपंथी गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है और क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ये गिरफ्तारियां ज़रूरी थीं.

हयात अहमद बट

इमेज स्रोत,IMRAN ALI

इमेज कैप्शन,

हयात अहमद बट

हयात अहमद बट की कहानी

श्रीनगर के सौरा के रहने वाले 47 साल के हयात अहमद बट को जम्मू कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के दो महीने बाद अक्तूबर 2019 में हिरासत में लिया गया था.

पुलिस ने तकनीकी और ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर नाटकीय तरीके से हयात को पहले हिरासत में लिया और फिर गिरफ्तार किया. पुलिस की टीम ने सादे लिबास में पहले उन्हें सौरा में लोकेट किया और फिर आंचर से उन्हें गिरफ्तार किया.

हयात अहमद की पत्नी मसर्रत पुलिस के लगाए सभी आरोपों को सिरे से ख़ारिज करती हैं और कहती हैं कि बाक़ी लोग अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध कर रहे थे और उनके पति ने भी यही किया.

उन्होंने कहा, "जब सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने का ऐलान किया तो हमारे इलाक़े में लोगों ने इसका विरोध किया. मेरे पति भी इसी तरह के एक विरोध प्रदर्शन में गए थे. उन्होंने मीडिया से बात की और सरकार के इस कदम का विरोध किया. कुछ दिनों बाद उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया."

"पहले तो हमें उनसे मिलने नहीं दिया गया. बाद में इंटेरोगेशन सेंटर में उन्होंने हमें उनसे मिलने दिया. इसके बाद उन्हें सेंट्रल जेल शिफ्ट कर दिया गया और उन्हें छह महीने वहां रखा गया. फिर उन्हें जम्मू की कोट भलवाल जेल भेज दिया गया."

वो बताती हैं, "हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और इस कारण उनकी गिरफ्तारी के बाद से हम उनसे मुलाक़ात नहीं कर पाए. मेरे पति जो कमाते थे उसी से परिवार का खर्च चलता था. अब जब वही जेल में हैं तो हमारा परिवार कैसे गुज़ारा करेगा. अपने पिता की गिरफ्तारी के बाद से मेरे दोनों बच्चों की मानसिक स्थिति भी बुरी तरह प्रभावित हुई है."

मसर्रत व्यवस्था पर तंज़ कसती हैं और सवाल करती हैं कि हम किस तरह के गणतंत्र में रहते हैं. वो कहती हैं, "जब हम न्याय के लिए क़ानून के पास जाते हैं तो हमें वहां से निकाल दिया जाता है, न तो हमें न्याय मिल रहा है और न ही हमारी बात कोई सुन रहा है."

अपने डोज़ियर में पुलिस ने कहा है कि बट पर अपने इलाक़े के युवाओं को अनुच्छेद 370 के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने के लिए उकसाने का आरोप लगाया है. पुलिस ने कहा है कि बट विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों के नेता थे.

डोज़ियर में पुलिस ने कहा है कि साल 2002 में बट को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत हवाला से जुड़े एक मामले में गिरफ्तार किया गया था. इस दस्तावेज़ के अनुसार कुल 18 एफ़आईआर में उनका नाम है.

हयात अहमद बट की पत्नी मसर्रत

इमेज स्रोत,IMRAN ALI

इमेज कैप्शन,

हयात अहमद बट की पत्नी मसर्रत

सौरा का आंचर इलाक़ा उन जगहों में से एक है जहां जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे.

हयात अहमद बट के परिवार ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट को हटाने को लेकर जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट में दर्ख्वास्त की है. उनके वकील मोहम्मद अशरफ़ का कहना है कि अभी मामले की सुनवाई शुरू होने का इंतज़ार कर रहे हैं.

इलाक़े में जानकारों का कहना है कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद इस सुरक्षात्मक क़ानून का इस्तेमाल सरकार के फ़ैसले का विरोध करने वालों की आवाज़ दबाने के लिए किया गया था.

कश्मीर विश्वविद्यालय के क़ानून विभाग के प्रोफ़ेसर शेख़ शौकत हुसैन बताते हैं, "कहा जाए तो जम्मू-कश्मीर में ऐसा क़ानून है जिसके आधार पर बिना ट्रायल के किसी व्यक्ति को दो साल तक के लिए जेल भेजा जा सकता है. इसका मतलब ये है कि कश्मीर में किसी को जेल भेजने के लिए किसी के गुनाहग़ार होने का सबूत नहीं चाहिए. शक के आधार पर किसी अपराध के बिना भी व्यक्ति को जेल भेजा जा सकता है."

"इस क़ानून के तहत सरकार किसी को भी हिरासत में ले सकती है. और जब अनुच्छेद 370 में बदलाव किए गए सरकार इसके विरोध में उठ रही आवाज़ें नहीं सुनना चाहती थी. सरकार यही सुनिश्चित करना चाहती थी कि अनुच्छेद 370 को हटाने के सरकार के फ़ैसले का कोई विरोध न हो. शक के आधार पर कुछ लोगों को कस्टडी में लिया गया. लोगों को न केवल हिरासत में लिया गया बल्कि उन्हें जम्मू कश्मीर से बाहर की जेलों में भी भेज दिया गया."

 

वीडियो कैप्शनचेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.

पोस्ट YouTube समाप्त, 3

कश्मीर में काम करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने पब्लिक सेफ्टी क़ानून का ग़लत फायदा उठाया है और लोगों के अधिकार छीने हैं.

मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील रियाज़ खावर कहते हैं, "5 अगस्त 2019 के बाद जो गिरफ्तारियां की गईं उनकी कोई ज़रूरत नहीं थी. अधिकतर मामलों में लोगों को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया. किसी पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगाने के लिए ज़रूरी है कि सरकार या अधिकारी के पास इस बात पर यक़ीन करने की वजह हो कि वह व्यक्ति अपनी पिछली गतिविधियों को दोहरा सकता है. इन मामलों में हमें ऐसा आधार नहीं दिखा. और अगर कोई ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों में या शामिल होता है तो उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाया जाना चाहिए."

वो कहते हैं कि कई मामलों में कोर्ट ने पब्लिक सेफ्टी क़ानून के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को रिहा कर दिया है और माना है कि ये गिरफ्तारियां ग़ैर-क़ानूनी थीं.

रियाज़ खावर का कहना है कि साल 1990 से इस क़ानून का इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिद्वंदियों की आवाज़ दबाने के लिए किया जा रहा है.

साल 2019 की अपनी सालाना रिपोर्ट में जम्मू कश्मीर के नागरिक संस्थानों के गठबंधन (मानवाधिकार संगठनों का गठबंधन) का कहना है कि नवंबर 20 को सरकार ने संसद में स्वीकार किया कि "अगस्त 5 तारीख के बाद से अब तक 5161 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिनमें से 609 लोग अभी भी गिरफ्तार हैं जबकि बाकियों को छोड़ दिया गया है." अब तक इस बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है कि इनमें से कितने लोगों को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया है.

संविधान के अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनमें से 144 किशोर भी शामिल हैं.

सितंबर 2019 में पुलिस ने जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट की जुवेनाइल जस्टिस कमिटी के सामने जो रिपोर्ट पेश की थी उसके अनुसार पुलिस ने कहा है कि गिरफ्तार किए गए 144 किशोरों में से 142 को रिहा कर दिया गया है.

You can share this post!

Comments

Leave Comments