बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की सीटों पर नामांकन के लिए महज दो दिन का ही समय बचा है और तीसरे चरण की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. इसके बावजूद कांग्रेस अपने उम्मीदवारों के नाम फाइल नहीं कर सकी है. कांग्रेस ने बिहार के पहले चरण की 21 प्रत्याशियों की लिस्ट अब तक जारी की है, जबकि महागठबंधन के तहते उसके हिस्से में 70 सीटें आई हैं. एक तरह से कांग्रेस को अभी भी 49 सीटों पर प्रत्याशी के नाम तय करने हैं.
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन में कांग्रेस जूनियर पार्टनर के तौर पर शामिल है. कांग्रेस को बिहार में कौन सी 70 सीटें मिली हैं, इसकी तस्वीर साफ नहीं है. इसके चलते पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है. वहीं, आरजेडी ने अपने सभी 144 सीटों में से करीब 140 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है, लेकिन कांग्रेस अभी भी अपनी सीटों को लेकर माथापच्ची करने में जुटी है.
दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस की जब सात अक्टूबर को 21 सीटों की उम्मीदवारों की पहली लिस्ट आई तो पार्टी में अफरा-तफरी मच गई. कांग्रेस की पहली लिस्ट में बाहरी लोगों को ही खास तवज्जो मिली है. यही नहीं पार्टी ने जमीनी कार्यकर्ताओं से ज्यादा रसूखवाले लोगों को ही मौका दिया है. ऐसे में बिहार में कांग्रेस प्रत्याशियों के चयन को लेकर पार्टी के कुछ बड़े नेताओं ने गड़बड़ी की शिकायत शीर्ष नेतृत्व से की थी.
कांग्रेस प्रत्याशियों की शिकायत के बाद पार्टी के आलाकमान ने अपने बाकी प्रत्याशियों के नामों की लिस्ट रोक दी थी, जिसे लेकर कांग्रेस चुनाव कमेटी की बुधवार की शाम को बैठक है. इस बैठक में बिहार के दूसरे और तीसरे चरण के प्रत्याशियों के नामों पर फाइनल मुहर लगेगी. इसी के बाद प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की जाएगी. कांग्रेस को बिहार में 70 सीटें मिली हैं. इसकी वजह ये है कि पार्टी में अंदरूनी खींचतान बहुत ज्यादा है.
हालांकि, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा, सीएलपी नेता सदानंद सिंह और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को चुनाव चयन समिति से हटाए जाने की चर्चा भी तेज थी, लेकिन बिहार कांग्रेस स्क्रीनिंग कमिटी के अध्यक्ष अविनाश पांडे ने ट्वीट कर इन खबरों को भ्रामक बताते हुए खारिज कर दिया है.
सोनिया गांधी ने बिहार चुनाव प्रबंधन और समन्वय समिति का प्रभारी महासचिव रणदीप सुरजेवाला को बनाया है जिसमें मीरा कुमार, शकील अहमद, तारिक अनवर, कीर्ति आजाद, शत्रुघ्न सिन्हा और निखिल कुमार जैसे प्रमुख नेताओं को भी जगह दी गई है. सोनिया ने इस कमेटी को उस समय गठित किया है जब पहली लिस्ट आने के बाद शिकायतें आईं.
दरअसल, देश की आजादी के बाद के पांच दशकों में ज्यादातर वक्त तक बिहार पर कांग्रेस ने ही राज किया है. 1952 से 2015 तक बिहार के 23 मुख्यमंत्रियों में से 18 कांग्रेंस के हुए, लेकिन 90 के दौर में मंडल की सियासत ने नए सामाजिक समीकरणों के चलते कांग्रेस की सियासी जमीन खिसक गई. कांग्रेस बिहार में 1990 से सत्ता से बाहर हुई तो आज तक पार्टी कभी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई.
कांग्रेस के पास बिहार में न तो कोई कद्दावर चेहरा है और न ही जमीनी स्तर पर संगठन खड़ा नजर आ रहा है. लालू यादव और नीतीश कुमार के सहारे कांग्रेस 2015 के चुनाव में 41 में से 27 सीटों जीतने में कामयाब रही थी. साल 2015 में पार्टी का वोट शेयर महज 6.07 फीसदी रहा था. वहीं, 2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को को महज 4 सीट मिली थीं, लेकिन वोट शेयर 8.38 फीसदी था. इस तरह से पिछले चुनाव में कांग्रेस का वोट फीसदी कम हुआ था, लेकिन सीटों में इजाफा होने के चलते उसके हौसले बुलंद थे.
बिहार में अपने राजनीतिक आधार को मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने कई सियासी प्रयोग भी किए. कांग्रेस ने 2018 में मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया और हाल ही में राजपूत समुदाय से समीर सिंह को विधान परिषद भेजा. कांग्रेस ने 21 उम्मीदवारों की लिस्ट में भी सवर्ण समुदाय से सबसे ज्यादा प्रत्याशियों पर दांव लगाया है. इसका मकसद कांग्रेस अपने पुराने वोट आधार सवर्ण को वापस अपने साथ लाना चाहती है.
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