वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकार के 20 लाख करोड़ के पैकेज के दूसरे किश्त की घोषणा करते हुए गुरुवार को प्रवासी मजदूरों के लिए भी कई ऐलान किए. लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार के ये ऐलान पलायन कर रहे प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को दूर करने के लिए फिलहाल बहुत कारगर नहीं हैं.
क्या हैं वित्त मंत्री के ऐलान
सबसे पहले यह जानते हैं कि वित्त मंत्री ने क्या ऐलान किए हैं. निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि सरकार श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है. वित्त मंत्री ने बताया कि न्यूनतम मजदूरी का अधिकार सभी मजदूरों को देने की तैयारी है. इसी तरह न्यूनतम मजदूरी में क्षेत्रीय असमानता खत्म करने की योजना है. सभी मजदूरों के लिए सालाना हेल्थ चेकअप भी अनिवार्य करने की योजना है. अनिवार्य नियुक्ति पत्र को भी जरूरी किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों को परिभाषित किया जाएगा ताकि उन्होंने बेहतर इंसेंटिव मिल सके. यही नहीं प्रवासी मजदूर वन नेशन, वन कार्ड सुविधा के तहत देश के किसी भी हिस्से में अपने राशन कार्ड का इस्तेमाल कर सकेंगे.
निर्मला सीतारमण ने कहा कि ESIC के लाभों पर भी विचार किया जा रहा है. यहां तक कि 100 से कम कर्मचारियों वाले और 10 या उससे कम कर्मचारियों वाली कंपनियों के लिए भी स्वैच्छिक होगा. हम छोटी इकाइयों के लिए ESIC कवरेज को अनिवार्य बनाना चाहते हैं, जहां श्रमिक खतरनाक नौकरियों में लगे हुए हैं. हम मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाने पर विचार कर रहे हैं.
तत्काल नकद सहायता क्यों नहीं
वित्त मंत्री ने कहा उन्होंने कहा कि बिना राशन कार्ड वालों को भी अनाज दिया जाएगा. जैवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर केआर श्यामसुंदर कहते हैं कि सबसे बड़ी और प्रभावशाली बात यही है. इससे करीब 8 करोड़ लोगों को फायदा मिलेगा.
इसके अलावा एक और बड़ी घोषणा यह है कि प्रवासी मजूदर अपने गांव वापस जाने पर मनरेगा में काम पा सकेंगे. प्रोफेसर श्यामसुंदर कहते हैं, 'सरकार इस संकट में फंस गए प्रवासी मजदूरों और 50 लाख रेहड़ी-पटरी कारोबारियों को तत्काल नकद सहायता देने पर क्यों नहीं सोचती.'
इंडस्ट्री को प्रोत्साहन मिले तो बात बने
रोजगार मुहैया कराने वाली फर्म टीम लीज की एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट रितुपर्णा चक्रवर्ती कहती हैं, 'अनौपचारिक क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारत में काफी कुछ अनौपचारिक क्षेत्र में है. इसलिए सवाल उठता है कि इन सबका लेखाजोखा और निगरानी कैसे हो. इस सेक्टर की निगरानी में अभी तक कोई भी सक्षम नहीं हो पाया है.'
उन्होंने कहा, 'गुरुवार को ज्यादातर जो घोषणाएं की गई हैं, वह मौद्रिक नीति के अनुरूप हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इससे इंडस्ट्री को कोई सीधा प्रोत्साहन मिलेगा. अगर ऐसा होता तो यह प्रवासी मजदूरों के लिए सबसे मददगार होता क्योंकि जब इंडस्ट्री अपने पैरों पर खड़ी होगी तो ही इन लोगों को रोजगार मिल सकेगा.'
लॉन्ग टर्म के हैं उपाय
शिव नाडर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट के हेड पार्थो चैटर्जी कहते हैं कि ऐसे कई ऐलान का फल मिलने में काफी समय लगेगा. उन्होंने कहा कि मनरेगा में करीब 50 फीसदी ज्यादा रजिस्ट्रेशन से यह संकेत मिलता है कि देश में बेरोजगारी बढ़ रही है. इसलिए ऐसी कोई योजना शहरी इलाके के लिए भी लानी चाहिए.
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