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भारत

चीन के साथ संघर्ष के लिए तैयार रहे भारत, टॉप रणनीतिक विशेषज्ञ ने चेताया

  • संभावित संघर्ष के लिए सैन्य रूप से तैयार रहे भारतः टेलिस
  • COVID-19 से बने दबाव की वजह है चीन का यह कदम
  • 'भारत अगर नई यथास्थिति मानता है तो ये दुर्भाग्यपूर्ण होगा'

दुनिया के जाने-माने रणनीतिक और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ एशले जे टेलिस को आशंका है कि भारत और चीन के बीच लद्दाख फेस-ऑफ दो एशियाई दिग्गजों के बीच सशस्त्र संघर्ष में तब्दील हो सकता है.

टेलिस ने इंडिया टुडे को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बताया, 'जो मुझे बहुत साफ है वो है कि भारत के साथ सीमाओं पर अलग-अलग क्षेत्रों में जो हो रहा है वो निश्चित रूप से स्थानीय स्तर पर हुई कार्रवाई नहीं है, जिसे किन्हीं उत्साही स्थानीय कमांडरों ने भड़काया हो.'

उन्होंने कहा, 'यह कार्रवाइयों का ऐसा सेट है जिसे थिएटर स्तर पर मंजूर किया गया, और अगर इन्हें थिएटर स्तर पर मंजूरी मिली तो इसे अनिवार्य तौर पर बीजिंग में जनरल स्टाफ के स्तर पर भी हरी झंडी दिखाई गई.'

'भारत चौकस सैन्य तैयारियां जारी रखे'

भारत के साथ ऐतिहासिक परमाणु समझौते में तत्कालीन बुश प्रशासन को मदद देने वाले टेलिस का मानना है कि चीन के साथ राजनयिक बातचीत में संलग्न रहते हुए भी नई दिल्ली को बीजिंग के साथ संभावित संघर्ष के लिए सैन्य रूप से तैयार रहना चाहिए.

टेलिस ने कहा, 'भारत चीन के साथ बातचीत जारी रखे हुए है - मुझे लगता है कि यह स्पष्ट रूप से कोशिश की पहली पंक्ति है जिसे आजमाया जाना चाहिए.'

उन्होंने आगे कहा, 'दूसरा, भारत को चौकस सैन्य तैयारियां जारी रखनी चाहिए, जिसमें स्थिति की गंभीरता बढ़ने का पूर्वानुमान लगाना भी शामिल है. साथ ही चीनियों को यह सोचने के लिए विवश करना चाहिए कि स्थिति गंभीर होने की लागत चीन की खुद की साख और हितों के लिए कितनी भारी हो सकती है. खास तौर पर तब जबकि ये हाशिए के क्षेत्र हैं और बुनियादी तौर पर चीन के मूल हितों के साथ नहीं जाते.'

उन्होंने लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिकों के मूवमेंट को चीन की ओर से अपने लाभ के लिए यथास्थिति को बदलने की साफ कोशिश बताया.

अंतरराष्ट्रीय रक्षा नीति विश्लेषक ने कहा, "मुझे लगता है कि चीनी जो करने की कोशिश कर रहे हैं, वो है जमीन पर नए तथ्यों को स्थापित करना." टेलिस ने कहा, "सैनिकों और चीज़ों को दावे वाली लाइनों की हद तक धकेल कर वो यथास्थिति को ऐसे बदलना चाहते हैं जिसके कि उन्हें लाभ हो.’’

टेलिस ने रेखांकित किया कि बीजिंग के आक्रामक कदमों को उसके Covid-19 से निपटने के तरीकों को लेकर बढ़ रहे वैश्विक दबाव से भी प्रेरित माना जा सकता है.

टेलिस ने कहा, "वो ऐसे समय में (यह) कर रहे हैं जब वो Covid-19 संकट में अपने प्रदर्शन को लेकर दबाव में हैं. यह ऐसा दिखाने का एक और तरीका है कि चीन महामारी के प्रबंधन को लेकर अपने प्रदर्शन पर अंतरराष्ट्रीय अभिव्यक्ति के आगे नहीं झुकेगा.’’

'भारत के साथ है अमेरिका'

टेलिस के मुताबिक अमेरिका भारत के साथ खड़ा रहेगा क्योंकि अमेरिका चीन की धौंसपट्टी को "गैर वाजिब और नाजायज" मानता है. उन्होंने कहा, 'कोई रास्ता नहीं है कि भारत पीछे हटेगा और न ही इसे ऐसा करना चाहिए. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यह समाधान के सभी प्रकार के टेस्ट्स के लिए खुले तिल जैसा होगा, न कि केवल सीमाओं के साथ.'

टेलिस ने कहा, 'और उन मुद्दों पर जहां विवाद वर्तमान में हो रहा है यानि कि पूर्वी लद्दाख तो वहां भारत के दावे असल में दृढ़ हैं और अमेरिका इनके साथ खड़ा होगा.'

उन्होंने कहा कि भारत के पास और कोई विकल्प नहीं है सिवाए इसके कि "खेल को अपने निष्कर्ष पर ले जाए" और "कोशिश करे और ऐसे तरीकों से करे कि नतीजा खुले संघर्ष के तौर पर सामने न आए.’’

ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश आवेग में

हालांकि टेलिस ने जोर देकर कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत और चीन के बीच मध्यस्थता की पेशकश असल में काम नहीं करेगी.

उन्होंने कहा, 'डोनाल्ड ट्रंप जो कुछ भी करते हैं, वो क्यों करते हैं, उसे समझा पाना बहुत कठिन है. लेकिन शांतिदूत होने की संभावना का विचार उन्हें लगातार लुभाता है. मैं इसे (मध्यस्थता की पेशकश को) गंभीरता से नहीं लूंगा. मुझे लगता है कि यह राष्ट्रपति की एक और आवेग में दी गई प्रतिक्रिया है. ट्रंप के कहने का मतलब है, लेकिन मुझे लगता है कि वो यह समझने के लिए पर्याप्त स्मार्ट हैं कि यह ऐसी पेशकश है जो कहीं नहीं जाने वाली है.'

टेलिस ने माना कि नई दिल्ली और बीजिंग के बीच बातचीत से दोनों देशों को अपने मुद्दों को सुलझाने में मदद मिलेगी. उन्होंने साथ ही कहा, 'लेकिन जिस बात को बहुत साफ तौर पर जताया जाना चाहिए, वह यह है कि चीन को एकतरफा रूप से जमीनी वास्तविकताओं को बदलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है क्योंकि उसने विवादित क्षेत्रों में सैनिक और सामान शिफ्ट कर पहला मूवमेंट करने का एडवांटेज लिया है.'

जैसे को तैसा: एक विकल्प

चीन के साथ आजमाए जा सकने वाले विकल्पों की सीमा के बारे में पूछे जाने पर टेलिस ने लद्दाख क्षेत्र में 'जैसे को तैसा' रिस्पॉन्स को एक विकल्प बताया.

उन्होंने चेताया, 'भारत नई यथास्थिति को मानने के लिए तैयार हो जाता है तो ये दुर्भाग्यपूर्ण होगा. अगर उसने ऐसा किया तो यह चीनियों को और अधिक धक्का देने के लिए लुभाएगा.'

उन्होंने कहा, 'भारत चीनी बलों को भौतिक तौर पर खदेड़ने में संलग्न हो सकता है लेकिन इससे निश्चित रूप से सैन्य झड़प होगी जो कि स्थिति की गंभीरता को बढ़ाते हुए अहम पारंपरिक विकल्पों की ओर ले जाएगी. इसलिए यह बहुत आकर्षक संभावना भी नहीं है. लेकिन तीसरी और सबसे दिलचस्प संभावना यह है कि भारत टिट-फॉर-टैट (जैसे को तैसा) खेल सकता है. LAC के साथ कई ऐसी बातें हैं जहां भारत को सामरिक लाभ है और क्षेत्रों पर कब्जा करने की क्षमता है. इसलिए भारत ठीक वैसे ही अंदाज में जवाब दे सकता है जैसे कि चीन ने असल में किया.'

टेलिस ने जोर देकर कहा कि चीनियों को यह समझने की जरूरत है कि उनकी "बिना उकसावे वाली कार्रवाई" ऐसी है जो "गहरी अस्थिरता" वाली है.

टेलिस ने कहा, 'यह आखिरकार भारत को अमेरिका से दूर रखने के चीन के बड़े उद्देश्य को कमज़ोर करता है. मेरा मतलब है कि इस तरह की कार्रवाइयां केवल सिर्फ गहरे भारत-अमेरिका सहयोग को बाध्य करेंगी, और ये वो बात है जिसे बीजिंग में एक स्मार्ट नेतृत्व न होने देने की उम्मीद करता है.'

रणनीतिक विश्लेषक ने स्थिति को "गंभीर" बताया और हैरानी जताई कि क्यों चीनियों ने लद्दाख क्षेत्र में जुटने के लिए यह समय चुना.

टेलिस ने कहा, 'इस मोड़ और समय पर, उन क्षेत्रों पर दावा करने का प्रयास क्यों किया जाता है जिन पर दोनों पक्ष इतने लंबे समय से अस्पष्टता के साथ रहते आए हैं? इससे कोई फर्क क्यों पड़ता है? चीन सच में हाशिए वाले क्षेत्रों को लेकर भारत के साथ वर्कमैन वाले बनाए गए रिश्तों से हुए थोड़े बहुत लाभों को क्यों बलिदान करना चाहता है?'

टेलिस ने चीन के बिल्ड अप के जवाब में भारत की कूटनीतिक व्यस्तताओं और सैन्य मूवमेंट की सराहना की.

चीन और स्थिति की गंभीरता बढ़ाने की कीमत

टेलिस ने कहा कि चीनी पीछे तभी हटेंगे जब स्थिति की गंभीरता बढ़ाने की कीमत का उन्हें अहसास होगा.

टेलिस ने कहा, 'मुझे लगता है निश्चित रूप से क्या होगा, कि दोनों पक्ष राजनयिक बातचीत में शामिल होने की कोशिश करेंगे और यथास्थिति बहाल करने की कोशिश करेंगे. लेकिन असली सवाल यह है कि क्या चीन जो इतनी दूर तक निवेश कर चुका है पीछे हटेगा? मुझे लगता है कि उनके पीछे हटने का एकमात्र तरीका है, जब वो ये महसूस करें कि एक गंभीर टकराव की कीमत उससे असल में कहीं ज्यादा होगी जितनी वो सहन करने लायक समझ रहे हैं.'

उन्होंने सुझाव दिया कि नई दिल्ली को बीजिंग के मित्र देशों समेत राजनयिक समुदाय को भी शामिल करना चाहिए जिससे कि उनके चीन पर प्रभाव का भी इस्तेमाल किया जा सके.

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