logo

  • 21
    10:09 pm
  • 10:09 pm
logo Media 24X7 News
news-details
दुनिया

भारत में चीन के कारोबार की पहचान ही मुश्किल, क्या बायकॉट करना है आसान?

  • चीन से जुड़े निवेशों में हाल के दिनों में वृद्धि
  • भारतीय स्टार्टअप्स में 4 अरब डॉलर का निवेश

लद्दाख में LAC के पास तनाव को लेकर चीनी उत्पादों के खिलाफ बयानबाज़ी बढ़ रही है, लेकिन जमीनी हकीकत के मुताबिक एशिया के दो आर्थिक दिग्गजों के बीच कारोबारी रिश्ते किसी भी बायकॉट की परत की तुलना में बहुत बड़े और बहुत जटिल हैं.

भारत में चीन के भारी निवेश को देखते हुए पहली बात ये जानना कि क्या चीनी है और क्या नहीं? और फिर उसके प्रतिस्पर्धी विकल्प की पहचान करना ही बहुत मुश्किल काम लगता है.

चीन की तकनीकी मौजूदगी

अकेले तकनीकी स्पेस में, चीन से जुड़े निवेशों में हाल के दिनों में वृद्धि देखी गई है. इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशंस से जुड़े थिंक टैंक ‘गेटवे हाउस’ की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट में भारतीय स्टार्टअप्स में 4 अरब डॉलर के चीनी तकनीकी निवेश का अनुमान लगाया गया है.

भारत के टॉप 30 यूनिकॉर्न्स (1 अरब डॉलर से ज्यादा मूल्य के स्टार्टअप्स) में से 18 चीनी फंड से पोषित हैं और तकनीक संचालित हैं. फरवरी में प्रकाशित इस रिपोर्ट में चीन के फंड से पोषित 92 प्रमुख स्टार्टअप की सूची दी गई है.

अहम चीनी निवेश

रणनीतिक निवेश के जरिए भारतीय कारोबारों में शामिल प्रमुख चीनी फर्मों में अलीबाबा, टेनसेंट और बाइटडांस हैं. अकेले अलीबाबा ग्रुप ने ही बिग बास्केट (25 करोड़ डॉलर),पेटीएम डॉट कॉम (40 करोड़ डॉलर), पेटीएम मॉल (15 करोड़ डॉलर), जोमेटो (20 करोड़ डॉलर) और स्नैपडील(70 करोड़ डॉलर) में रणनीतिक निवेश किया है.

इसी तरह एक अन्य चीनी समूह टेनसेंट होल्डिंग्स ने भारतीय कंपनियों जैसे कि बायजू (5 करोड़ डॉलर), ड्रीम 11 (15 करोड़ ड़ॉलर), फ्लिपकार्ट (30 करोड़ डॉलर), हाइक मैसेंजर (15 करोड़ डॉलर), ओला (50 करोड़ डॉलर) और स्विगी (50 करोड़ डॉलर) में अपना निवेश किया है.

जटिल कारोबारी साझेदारियां

यहां यह बताना अहम है कि ये चीनी फर्म इन प्लेटफार्म्स की इकलौती मालिक नहीं हैं. कई भारतीय और गैर-चीनी निवेशक इन कंपनियों में से अधिकतर पर मेजोरिटी कंट्रोल रखते हैं, जिससे उन्हें चीनी या गैर-चीनी के रूप में वर्गीकृत करना मुश्किल हो जाता है.

विशेषज्ञों के मुताबिक भारतीय स्टार्टअप्स के बड़े पैमाने पर विदेशी निवेशकों की ओर से फंडेड होने का एक बड़ा कारण है कि बाज़ार बनाने में शुरुआत में बड़ा जोखिम होता है.

गेटवे हाउस रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत में अधिकतर वेंचर-कैपिटेलिस्ट धनी व्यक्ति/ पारिवारिक कार्यालय हैं- और वो 10 करोड़ डॉलर की प्रतिबद्धता नहीं जता सकते जो कि स्टार्टअप्स के शुरुआती घाटे के दौर में उन्हें फंड करने के लिए चाहिए होती है. उदाहरण के लिए, पेटीएम ने वित्त वर्ष 19 में 3,690 करोड़ रुपये का नुकसान उठाया, जबकि फ्लिपकार्ट को इसी साल 3,837 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. ऐसे में भारतीय स्टार्ट-अप स्पेस प्रमुख खिलाड़ियों के रूप में पश्चिमी और चीनी निवेशकों के लिए अहम प्लेयर्स के तौर पर खुली रह गई है.

अन्य चीनी प्लेटफॉर्म्स

भारत में एक और प्रमुख चीनी उपस्थिति टिकटॉक के रूप में है, जिसके 20 करोड़ से अधिक सब्सक्राइबर्स हैं और इसने भारतीय बाजार में यूट्यूब को पीछे छोड़ दिया है.

टिकटॉक की मूल कंपनी बीजिंग स्थित प्रौद्योगिकी फर्म बाइटडांस है. ये समूह हाल ही में भारत में चीनी विरोधी कंटेंट को कथित रूप से सेंसर करने के लिए चर्चा में रहा है.

मोबाइल डेटा और एनालिटिक्स प्लेटफ़ॉर्म ‘ऐप एनी’ की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, "भारत में शीर्ष ऐप डाउनलोड का 50 प्रतिशत चीनी निवेशों के साथ था, जैसे कि यूसी ब्राउज़र, शेयरइट, टिकटॉक और विगो वीडियो आदि.” इन ऐप्स का ग्रामीण और शहरी भारत दोनों में अहम यूजर बेस है.

चीनी हार्डवेयर

हार्डवेयर स्पेस में चीनी कंपनियों का दबदबा और भी ज्यादा है. ग्लोबल बिजनेस एनालिसिस फर्म ‘काउंटरपॉइंट रिसर्च’ के मुताबिक, "भारतीय स्मार्ट फोन बाजार में चीनी ब्रैंड्स की बाजार हिस्सेदारी 2019 की पहली तिमाही के दौरान रिकॉर्ड 66 प्रतिशत तक पहुंच गई."

चीनी फोन ब्रैंड Xiaomi, Vivo और Oppo भारत के घर-घर में जाने वाले नाम हैं. हालांकि, प्रमुख चीनी फोन कंपनियों में से एक, Xiaomi ने घोषणा की है कि वह भारत में अपने कुछ मॉडल बना रही है.

निवेश के अनेक रास्ते

निवेश में बढ़ती जटिलताओं के साथ, एक चीनी ब्रैंड की पहचान करना भी मुश्किल हो रहा है. गेटवे हाउस की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ चीनी फंड भारत में अपने निवेश को सिंगापुर, हांगकांग, मॉरीशस आदि में स्थित कार्यालयों के माध्यम से करते हैं, “मिसाल के लिए, पेटीएम में अलीबाबा का निवेश अलीबाबा सिंगापुर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से किया गया है. ये भारत के सरकारी डेटा में चीनी निवेश के तौर पर दर्ज नहीं है.”

चीन के बहुत सारे हार्डवेयर, इलेक्ट्रॉनिक आइटम और होम यूटिलिटी प्रोडक्ट खुले बाजार में बिकते हैं, जिन पर कोई ब्रैंड नेम ही नहीं होता जिससे कि उनकी पहचान की जा सके.

You can share this post!

Comments

Leave Comments