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बिजनेस

50 हजार करोड़ की सरकारी योजना से चीन छोड़कर भारत आएंगे मोबाइल हैंडसेट के दिग्गज?

  • दिग्गज मोबाइल कंपनियों को आकर्षित करने का प्लान
  • 50 हजार करोड़ रुपये की लागत से शुरू की गईं तीन योजनाएं
  • एक्सपर्ट को इस पर संदेह है कि इनसे खास फायदा होगा

सरकार ने मोबाइल फोन उत्पादन में भारत को दुनिया का शीर्ष देश बनाने के लक्ष्य के साथ 50 हजार करोड़ रुपये की लागत से तीन नई योजनाएं शुरू करने की घोषणा की है. लेकिन जानकारों की मानें तो इतने प्रयास से मोबाइल हैंडसेट में चीनी प्रभुत्व को खत्म करना और दुनिया की टॉप मोबाइल कंपनियों को बुलाना आसान नहीं होगा.

क्या है सरकार की योजना

सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह ऐलान करते हुए मंगलवार को कहा कि मेक इन इंडिया किसी दूसरे देश को पीछे छोड़ने के लिए नहीं बल्कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए है. मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों एवं उसके कलपुर्जों के उत्पादन को गति देने के उद्देश्य से ये योजनाएं शुरू की गईं हैं.

10 लाख लोगों को रोजगार का वादा

प्रसाद ने कहा कि इन तीनों योजनाओं से अगले पांच साल में करीब 10 लाख लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान है. इसके साथ ही आठ लाख करोड़ रुपये के मैन्युफैक्चरिंगऔर 5.8 लाख करोड़ रुपये के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है. उन्होंने कहा कि 40995 करोड़ रुपये की प्रोडक्ट लिंक्ड इन्सेंटिव (PLI) योजना का लक्ष्य मोबाइल फोन और इलेक्ट्रानिक कलपुर्जों के उत्पादन को बढ़ाना है.

इनके द्वारा मंत्रालय भारत में वैश्विक मोबाइल हैंडसेट निर्माताओं को भी आकर्षित करना चाहता है और मोबाइल हैंडसेट के लिए ग्लोबल मैन्युफक्चरिंग हब बनना चाहता है.

आंकड़ों के मुताबिक, देश में मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग कारोबार साल 2014-15 में 2.9 अरब डॉलर से बढ़कर 2018-19 में 24.3 अरब डॉलर तक पहुंच गया. यानी इस दौरान इसमें 70 फीसदी की सालाना बढ़त हुई है.

टॉप 5 कंपनियां भारत आएं

प्रसाद ने कहा कि दुनिया में मोबाइल मार्केट के 80 फीसदी हिस्से पर सिर्फ 5-6 कंपनियों को कब्जा है और इसलिए भारत इन 5 टॉप ग्लोबल प्लेयर्स को यहां आकर्षित करने का इरादा रखता है. इसके अलावा पांच भारतीय कंपनियों को भी प्रमोट करने की योजना है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

एक्सपर्ट कहते हैं कि सरकार का यह प्लान कागज पर तो बहुत अच्छा लगता है, लेकिन इसको लागू करना आसान नहीं है. इसके अलावा कई मामलों में स्पष्टता का अभाव है. एक टेलीकॉम एनालिस्ट ने कहा, 'योग्यता की शर्त में मैन्युफैक्चरिंग और वैल्यू एडिशन की परिभाषा का अभाव है, ऐसे में कोई कंपनी कम्पोनेंट का 100 फीसदी आयात कर पीएलआई का दावा कर सकती है.'

अभी देश में 80 फीसदी स्मार्टफोन उत्पादक पूरी तरह से आयातित किट मंगाकर यहां उसकी एसेंबलिंग करते हैं. मोबाइल कारोबार में कुछ कंपनियां खुद हैंडसेट बनाती हैं तो कुछ अपना डिजाइनिंग कर किसी और से बनवाती हैं. दिग्गज कंपनी ऐपल भी दूसरी कंपनियों विस्ट्रॉन, फॉक्सकॉन और पेगाट्रन से हैंडसेट बनवाती है. ऐपल के ये डिवाइस मैन्युफक्चरर वैसे तो ताइवान के हैं, लेकिन ये भी सस्ती लागत की वजह से अपना मैन्युफैक्चरिंग कार्य चीन के कारखानों से करते हैं. इसी तरह ओप्पो, शायोमी, विवो जैसी कंपनियां चीन की विंगटेक, लांगचीयर जैसी दूसरी कंपनियों से अपने हैंडसेट बनवाती हैं.

चीन में इन कंपनियों को भारी सरकारी सहायता मिलती है, जिसकी वजह से इनकी लागत काफी कम हो जाती है. काउंटरपॉइंट रिसर्च के वाइस प्रेसिडेंट (रिसर्च )नील शाह कहते हैं, 'आप ऐपल से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वह अचानक चीन छोड़कर आ जाएगी. चीन में जो डिवाइस मेकर हैं उन्हें किसी और देश में जाने के पहले कई दफा सोचना पड़ेगा, क्योंकि वहां की सरकार उन पर सख्त नियंत्रण भी रखती है. वे चीन सरकार को नाराज नहीं कर सकतीं. भारत सरकार इतने बड़े पैमाने पर इन कंपनियों को इन्सेंटिव नहीं दे सकती, जैसा कि चीन देता है.'

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