कोरोना वायरस के मामले जहां तेजी से बढ़ रहे हैं वहीं इसकी चपेट में आए एसिम्प्टमैटिक यानी बिना लक्षण वाले लोग और चिंता बढ़ाते जा रहे हैं. मेडिकल जर्नल Annals of Internal Medicine में 3 जून को छपी एक स्टडी में इस बात के संकेत हैं कि एसिम्प्टमैटिक लोग बिना पता लगे ही कोरोना वायरस को लोगों में तेजी से फैला सकते हैं.
स्टडी में कहा गया है, ऐसी संभावना है कि कोरोना वायरस से संक्रमित लगभग 40-45 फीसदी लोग एसिम्प्टमैटिक रहेंगे. यह संकेत देते हैं कि लोगों के जरिए वायरस पहले से अधिक चुपचाप तरीके से और ज्यादा फैल सकता है.' शोधकर्ताओं ने ये स्टडी अमेरिका के Scripps Research Translational Institute में की.
स्टडी में कहा गया है कि, 'एसिम्प्टमैटिक लोगों के संपर्क में आए व्यक्तियों में कोरोना वायरस 14 दिनों से भी ज्यादा रह सकता है. जरूरी नहीं है कि बिना लक्षण वाले कोरोना के मरीज नुकसान ना पहुंचाते हों.' वैज्ञानिकों ने पूरी दुनिया के 16 विभिन्न समूहों के कोरोना वायरस मरीजों के डेटा की समीक्षा की जिसका मकसद ये पता लगाना था कि एसिम्प्टमैटिक लोगों को किस तरह खोजा जा सकता है.
स्टडी के अनुसार, 'बिना लक्षण और लक्षण आने से पहले वाले कोरोना के मरीजों में फर्क को लेकर भी कई तरह की चिंताएं हैं. इसके बावजूद, स्टडी के 4-5 वर्ग समूह इस ओर इशारा करते हैं कि बिना लक्षण वाले मरीजों में भी आगे चलकर कोरोना के लक्षण आ सकते हैं. इटली और जापान के वर्ग समूहों में कोरोना के शून्य लक्षण वाले मरीजों में बाद में लक्षण आ गए. ग्रीक और न्यूयॉर्क में 10 फीसदी एसिम्प्टमैटिक लोगों में बाद में लक्षण नजर आए.
स्टडी में शामिल किंग काउंटी के 27 में से 24 (88.9 फीसदी) लोगों में बाद में कोरोना के लक्षण आ गए और इन्हें लक्षण आने से पहले की कैटेगरी में रखा गया. ये लोग संभवत: बुजुर्ग और पहले से कोई बीमारी वाले थे.
भारत में नहीं होता है एसिम्प्टमैटिक लोगों का टेस्ट
इन आंकड़ों से भारत के टेस्टिंग सिस्टम पर भी सवाल उठता है. ICMR की गाइडलाइन्स के मुताबिक, सिर्फ लक्षण वाले लोग ही कोरोना वायरस का टेस्ट करा सकते हैं. 18 मई के जारी एक और गाइडलाइन में कहा गया कि, 'हाई रिस्क एसिम्प्टमैटिक और कोरोना वायरस के सीधे संपर्क में आने वाले लोगों के भी टेस्ट किए जाने चाहिए.'
भारत के विशेषज्ञों को लगता है कि ICMR को अब अपनी टेस्टिंग रणनीति संशोधित करनी चाहिए और नई बातों को ध्यान में रखते हुए ज्यादा टेस्टिंग करानी चाहिए. ICMR के रिसर्च टास्क के सदस्य और PHFI में महामारी विज्ञान के प्रमुख प्रोफेसर गिरिधर बाबू का कहना है, 'कई प्रमाण स्पष्ट रूप से ये संकेत दे रहे हैं कि एसिम्प्टमैटिक लोग भी कोरोना वायरस फैला सकते हैं. केवल 10 फीसदी एसिम्प्टमैटिक लोगों में लक्षण आ सकते हैं. सामान्य आबादी में एसिम्प्टमैटिक लोगों का अनुपात लगभग 40 फीसदी है. इसलिए टेस्टिंग रणनीति में सुधार की जरूरत है.'
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुमानों के अनुसार, भारत में लगभग 80 फीसदी मामले एसिम्प्टमैटिक हैं, 20 फीसदी लोग लक्षण वाले हैं. 20 फीसदी में से 15 फीसदी लोग अस्पताल में भर्ती होते हैं और केवल 5 फीसदी लोगों को ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है. भारत कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. हालांकि, बहुत लोग रिकवर भी हो रहे हैं.
पल्मोनोलॉजिस्ट और एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने इंडिया टुडे नेटवर्क को दिए एक इंटरव्यू में कहा, 'मेरा मानना है कि हम लोगों को अब यह सोच कर चलना चाहिए कि हम जिस किसी से भी मिलते हैं वो एसिम्प्टमैटिक पॉजिटिव है. दिल्ली या कई अन्य शहरों में ऐसी ही स्थिति है. बाजार, अस्पताल या कहीं भी घूमने जा रहे हैं तो ये याद रखें कि आपके आस-पास कोई भी एसिम्प्टमैटिक व्यक्ति हो सकता है. खासतौर से जब लॉकडाउन खुल रहा है तो ये और भी जरूरी हो जाता है.'
क्या कहता है WHO?
इससे पहले WHO ने कहा था कि कोरोना वायरस के बिना लक्षण वाले मरीजों से संक्रमण फैलने का खतरा कम होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की ऑफिसर मारिया वैन करखोव ने जेनेवा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी जानकारी देते हुए कहा था, 'वास्तव में एसिम्प्टोमैटिक रोगियों से किसी अन्य व्यक्ति के संक्रमित होने का खतरा काफी कम होता है. हमारे पास इस बारे में कई देशों से रिपोर्ट आई है जिन्होंने इसकी बारीकी से जांच की है.'
WHO की अधिकारी ने कहा था कि जिन लोगों में कोरोना वायरस के लक्षण नहीं नजर आते हैं, उनके जरिए संक्रमण फैलने का खतरा 6 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है. कई स्टडी के मुताबिक, यह वायरस बिना लक्षणों के लोगों फैल रहा है, लेकिन उनमें से कई या तो एनकोडेटल रिपोर्ट हैं या फिर किसी मॉडल पर आधारित हैं.मारिया ने कहा कि कोविड-19 एक रिस्पिरेटरी डिसीज़ है जो खांसते या छींकते वक्त बाहर आए ड्रॉपलेट्स से फैलती है. उन्होंने कहा कि अगर सिर्फ सिम्प्टोमैटिक रोगियों पर ध्यान दिया जाए, उन्हें आइसोलेट किया जाए, संपर्क में आए लोगों को देखें और उन्हें भी क्वारनटीन करें तो इसका खतरा काफी कम हो सकता है.
WHO की अधिकारी ने यह भी कहा था कि जिन मरीजों में कोरोना के लक्षण नहीं नजर आते हैं, उनकी हालत बहुत गंभीर नहीं है. यानी उनमें कोविड-19 के विशेष लक्षण नहीं दिखते हैं. तेज बुखार, सूखी खांसी, सांस में तकलीफ जैसी बड़ी समस्या उनमें कम देखने को मिलती है. उनमें थोड़ी बहुत समस्या देखने को मिल सकती है. हालांकि सोशल मीडिया पर हंगामा होने के बाद WHO ने ये बयान वापस ले लिया था.
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