logo

  • 23
    12:30 pm
  • 12:30 pm
logo Media 24X7 News
news-details
बिजनेस

पेट्रोल-डीजल के लगातार बढ़ते दाम के पीछे है लॉकडाउन कनेक्शन? जानिए पूरी कहानी

  • कच्चे तेल में नरमी के बावजूद लगातार बढ़ रहे पेट्रोल-डीजल के दाम
  • पेट्रोलियम पदार्थ को सरकार ने राजस्व के लिए दुधारू गाय बना लिया है

पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार 13वें दिन शुक्रवार को बढ़त हुई है. दिल्ली में पेट्रोल 78.37 रुपये लीटर हो गया है. यह तब है जब कच्चे तेल की कीमतों में लगातार नरमी बनी हुई है. आखिर क्या है सरकार या कंपनियों की मजबूरी, इसके पीछे क्या है लॉकडाउन कनेक्शन आइए जानते हैं.

पिछले 13 दिनों में डीजल की कीमत में 7.67 रुपये प्रति लीटर और पेट्रोल के दाम में 7.09 रुपये प्रति लीटर की बढ़त हुई है. ईंधन की इन कीमतों में बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा लगाए गए एक्साइज ड्यूटी यानी उत्पाद शुल्क का होता है.

भारतीय बॉस्केट के लिए कच्चे तेल की लागत इस साल जनवरी के 70 बैरल प्रति डॉलर से अप्रैल में 17 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई. इसके बावजूद सरकार ने 6 मई 2020 को पेट्रोल पर 10 रुपये लीटर और डीजल पर 13 रुपये लीटर का उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया. अब ब्रांडेड पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 44.16 रुपये लीटर तक पहुंच गई है, जबकि ब्रांडेड हाईस्पीड डीजल पर यह 34.19 रुपये लीटर तक पहुंच गई है. एक्साइज ड्यूटी के अलावा पेट्रोल-डीजल पर राज्यों का वैट और कस्टम ड्यूटी यानी सीमा शुल्क भी लिया जाता है.

कच्चे तेल में गिरावट से सरकार को काफी फायदा हुआ है. इस साल 1 जनवरी से 4 मई तक कच्चे तेल की लागत में ​70 फीसदी की गिरावट होने के बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमतों में महज 10 फीसदी की गिरावट आई. इसके बाद पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़त होने लगी. पिछले 13 दिनों से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार बढ़त हो रही है. मई में कच्चे तेल के भारतीय बास्केट की लागत एक हफ्ते में ही दोगुना होकर 40 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई.

लॉकडाउन से हुए नुकसान की भरपाई

लॉकडाउन की वजह से सरकार का खजाना खाली हो गया था. ऐसे में उसके पास पेट्रोल-डीजल ही एकमात्र सोर्स था जहां से वह अच्छा राजस्व इकट्ठा कर सकती थी. जीएसटी और डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में तो कोरोना लॉकडाउन की वजह से भारी गिरावट आई है. अप्रैल में सेंट्रल जीएसटी कलेक्शन महज 6,000 करोड़ रुपये का हुआ, जबकि एक साल पहले इस अवधि में सीजीएसटी कलेक्शन 47,000 करोड़ रुपये का हुआ था.

तो इस नुकसान की भरपाई सरकार पेट्रोल-डीजल पर टैक्स बढ़ाकर करना चाहती है. वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव सुभाष चंद्र गर्ग के अनुसार सरकार पेट्रोलियम से ज्यादा से राजस्व हासिल कर लेना चाहती है. उन्होंने कहा, 'जब सरकार ने एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई तो कच्चे तेल की कीमतें काफी निचले स्तर पर थीं और पेट्रोलियम कंपनियों को कुछ मुनाफा हो रहा था. कच्चे तेल में गिरावट को राजस्व बढ़ाने का मौका देखा जा रहा है.'

अब क्यों बढ़ रहे पेट्रोल-डीजल के दाम

असल में जब कच्चे तेल की कीमतें काफी नरम थीं, तो सरकार ने टैक्सेज में भारी बढ़त कर इनके दाम बढ़ा दिए. इससे पेट्रोलियम कंपनियों को कोई फायदा नहीं हुआ है. अब जब कच्चे तेल की लागत एक महीने में दोगुना हो गई है तो पेट्रोलियम कंपनियों को अपना फायदा बनाए रखने के लिए इनकी कीमतें लगातार बढ़ानी पड़ रही हैं.

जब कच्चे तेल की कीमत 34-35 डॉलर से ऊपर पहुंच गई, तब चुनौती बढ़ने लगी और पेट्रोलियम उत्पादों के दाम बढ़ाने पड़े. लेकिन कच्चे तेल की यह कीमतें एक साल पहले की तुलना में आधी हैं, इसलिए दाम बढ़ाने पर सवाल उठने लगे.

पेट्रोलियम को बनाया दुधारू गाय

पिछले पांच साल में सरकार का पेट्रोलियम से राजस्व बढ़कर दोगुना से ज्यादा हो गया है. 2019-20 में कच्चे तेल की औसत कीमत 60.47 डॉलर प्रति बैरल थी. इस दौरान सरकार ने पेट्रो​लियम पदार्थों पर एक्साइज ड्यूटी से 2.23 लाख करोड़ रुपये का राजस्व कमाया जो कि साल 2014-15 के 99,000 करोड़ के दोगुने से भी ज्यादा है.

 

You can share this post!

Comments

Leave Comments