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मूवी

नम, खारी और दर्द से भरी इरफान की वो आंखें, एक तस्वीर की कहानी

फोटोग्राफर में हमेशा एक व्याकुलता होती है. व्याकुलता कि वो लीक से हटकर कुछ अलग तस्वीरें आपको दिखाए और आपकी चेतना के सरोवर को कोलाहल से, लहरों से, उत्क्षेप से भर दे. यह व्याकुलता और इसपर इरफ़ान जैसा एक्टर. मुझे कुछ स्मरणीय होने का अंदेशा था.

इरफान की एक्टिंग में एक अजब सी ऊर्जा और आक्रामकता थी. एक तेज़ी थी, पैनापन था. वह हर किरदार को पर्दे पर जीवंत कर देते थे. एकदम सहज स्वाभाविक. ऐसा महसूस होता था कि ये जो एक्टर विश्वस्तर पर छा रहा है, अपने आसपास का ही कोई है, हममें से एक है.

उनकी तस्वीरों में एक चमक है. बंद होठों से बोलता हुआ चेहरा और आपके अंदर तक झांकती आंखें. अगर आप एक फोटोग्राफर हैं, उन्हें शूट कर रहे हैं और उनकी बड़ी-बड़ी, ऊर्जा से लबरेज आंखों को अपने कैमरे में कैद नहीं किया तो वह ऐसा ही है जैसे एक अद्भुत सूर्यास्त में सूरज का तस्वीर में न होना.

मैं भी उनकी आंखों से आगे नहीं बढ़ सका. मैंने पहली बार 10 साल पहले उनकी फोटोग्राफी की थी. उनका कैमरे के लैंस से गजब का तालमेल था और मैंने इरफान की आंखों की गहराई वाली कई तस्वीरें कैमरे में कैद कर ली.

लेकिन उनकी कई शानदार फिल्में देखने के बाद मैं एक अभिनेता को कैमरे में कैद करना चाहता था, सिर्फ उनकी बड़ी-बड़ी आंखों को कैमरे में घूरते हुए नहीं बल्कि उनके अभिनय को कैद करना चाहता था. जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरे दिमाग में ये कीड़ा घर करता गया. मैं अगले मौका की तलाश में था. और आखिरकार वह मौका आ ही गया.

यह साल 2016 था. देश पर कट्टरपंथ के काले बादल छाए हुए थे. तब हमलोगों ने अपने समय की सबसे खराब मॉब लिंचिंग देखी. गौ-रक्षकों ने लोगों में दहशत पैदा कर रखी थी. कई बड़े-बड़े लेखक और स्कॉलर इन घटनाओं पर सरकार की चुप्पी और बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में अपने-अपने पुरस्कार लौटा चुके थे.

इंडिया टुडे मैग्जीन अपना स्वतंत्रता दिवस विशेषांक लाने वाला था जिसमें देश के अलग-अलग हिस्से के लोगों से उनके विचार संजोए जाने थे कि वे स्वतंत्रता का मतलब क्या समझते हैं. मुझे उस विशेषांक के लिए कवर फोटो लेना था. मैं एक ऐसी तस्वीर खींचना चाहता था जो लोगों के दर्द को दर्शा सके, उनकी पीड़ा को महसूस करा सके.

इस विशेषांक के एक लेखक इरफान भी थे. उन्होंने इस्लाम में जानवरों की कुर्बानी प्रथा पर सवाल उठाए थे और उनके इस विचार के लिए उनपर हमले हो रहे थे. मुझे उनकी भी फोटो लेनी थी. इसी दौरान वो एक फिल्म के प्रमोशन के लिए हमारे ऑफिस के स्टूडियो में थे.

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