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हेल्थ

वुहान की तर्ज पर मुंबई में बन रहा हॉस्पिटल, ये है कोरोना से निपटने की तैयारी

  • बीकेसी मैदान में बन रहा हॉस्पिटल 14 मई से पहले शुरू करने का लक्ष्य
  • 1000 बेड के हॉस्पिटल की क्षमता में 5000 बेड तक का हो सकेगा इजाफा

महाराष्ट्र में कोरोना वायरस का कहर जारी है. लॉकडाउन के बावजूद मरीजों की तादाद लगातार बढ़ रही है. कोरोना की महामारी से सर्वाधिक प्रभावित इस सूबे में मरीजों की तादाद 23000 के पार पहुंच चुकी है, जबकि अब तक 860 से अधिक लोग इस बीमारी के कारण जान गंवा चुके हैं. देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में ही 14500 से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हैं. अब तक 528 लोगों की मौत हो चुकी है

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में जरूरी सेवाओं से जुड़े लोगों के लिए लोकल ट्रेन सेवा शुरू करने की मांग की. इन सबके बीच लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए अंदेशा जताया जा रहा है कि कोरोना पीड़ितों की तादाद अकेले मुंबई में ही 70000 के पार पहुंच सकती है. इसे देखते हुए अब मुंबई में वुहान की तर्ज पर अस्पताल बनाया जा रहा है. बीकेसी मैदान में 28 अप्रैल से बनाए जा रहे अस्पताल को 15 दिन में (14 मई से पहले) चालू करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. कहा जा रहा है कि आवश्यकता पड़ने पर 1000 की बेड के इस अस्पताल की क्षमता में 5000 बेड तक का इजाफा किया जा सकता है.

गौरतलब है कि कोरोना के मरीजों और मौत के आंकड़े मुंबई में अधिक सामने आ रहे हैं. सरकारी और निजी अस्पताल मिलाकर कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए मुंबई में 3 हजार बेड हैं. अनुमान है कि मुंबई में कोरोना के केस मई में और अधिक बढ़ सकते हैं. इसे देखते हुए ही सरकार यह मेकशिफ्ट हॉस्पिटल बना तो रही है, पर कुछ ही दिन बाद मॉनसून की चुनौती भी मुंबई के सामने होगी. दूसरी तरफ, सरकार की ओर से रहने-खाने के इंतजाम और ट्रेन से सुरक्षित घर पहुंचाने के आश्वासन भी प्रवासियों को पैदल घर जाने से रोकने के प्रयास में असफल हो रहे हैं.

भूख, बेरोजगारी और कोरोना का डर प्रवासी मजदूरों को महाराष्ट्र छोड़ने के लिए मजबूर कर रहा है. साधनों के अभाव में किसी भी कीमत पर घर जाने की ठान चुके प्रवासी मजदूर साधन नहीं मिलने पर पैदल सड़कों पर निकल जा रहे, जिससे लॉकडाउन में भी कसारा जैसे इलाकों में जाम लगने लगा है. मुंबई-नासिक हाईवे भी सोमवार को जाम हो गया. प्रवासी मजदूर पैदल, साइकिल पर, ऑटो में भरकर, बाइक पर अपने घर जाने की कोशिश करते रहे. मुंबई में रहकर खाने की डिलीवरी का काम करने वाले शत्रुघ्न चौहान ने बताया कि लॉकडाउन के कारण काम बंद हो गया. जो भी थोड़ी बहुत बचत थी, वो भी चली गई. उन्होंने अब अपने परिवार को लेकर गोंडा जाने की जानकारी दी और कहा कि अब बस भगवान ही सहारा हैं.

'विदेश से लाने के लिए फ्लाइट भेज रहे, हमें सड़क पर छोड़ दिया'

अपने घर तक पहुंचने के लिए हजारों किलोमीटर की दूरी पैदल नापने को मजबूर मजदूरों में सरकार को लेकर भी आक्रोश झलक रहा है. लगभग हर मजदूर का कहना है कि विदेश में रह रहे भारतीयों को स्वदेश लाने के लिए सरकार फ्लाइट भेज रही है, लेकिन उन्हें सड़क पर छोड़ दिया गया है. पैदल ही घर जा रहे मजदूरों की भीड़ में गोंडा के रहने वाले रमेश कुमार जैसे कई ऐसे मजदूर भी हैं, जिन्हें काम से नहीं निकाला गया. ये मजदूर डर के कारण अब काम नहीं करना चाहते और घर वापस लौटना चाहते हैं. कुछ मजदूर लॉकडाउन के बाद मुंबई वापस आना चाहते हैं, लेकिन शहर में हो रही मौत के आंकड़े से भयभीत भी हैं.

ट्रक वाले ले रहे 2 से 4 हजार, फिर भी नहीं घर पहुंचाने की गारंटी

ट्रक वाले मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए 2 से 4 हजार रुपये ले रहे हैं. जैसे-तैसे इंतजाम कर यह रुपये दे देने के बाद भी वे घर तक पहुंचा ही देंगे, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है. अगर पुलिस पकड़ ले, तो मजदूरों का पैसा बेकार चला जाता है. बहुत सारे मजदूरों ने ट्रेन का इंतजार किया, लेकिन इनका धैर्य भी अब जवाब देने लगा है. बता दें कि यह हाल तब है, जब खुद गृह मंत्रालय ने सभी प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर राज्य के मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि कोई भी मजदूर सड़क और रेलवे ट्रैक के रास्ते पैदल न जाए.

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