उत्तर प्रदेश के चित्रकूट की खदानों में कम उम्र की लड़कियों के साथ शारीरिक शोषण हो रहा है. चित्रकूट के डफई गांव में रहने वाली सौम्या (बदला हुआ नाम) बताती है कि खदान पर जाकर काम मांगते हैं तो वहां लोग कहते हैं शरीर दो तभी काम मिलेगा. हमारी मजबूरी है. उनकी बात मानकर फिर काम पर लगते हैं. कई बार काम के पूरे पैसे भी नहीं मिलते. खदान के क्रशर पर काम करने वाले लोग कहते हैं तुमको काम पर नहीं रखेंगे. अब बताइए ऐसे में क्या खाएंगे. इसलिए हम जाते हैं और उनकी बात माननी पड़ती है.
ऐसी ही कहानी है चित्रकूट की खदानों में नाबालिग लड़कियों की. आजतक की खास रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है कि खदानों में नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण किया जाता है. दो जून की रोटी का जुगाड़ करने के लिए हड्डियां गला देने वाली मेहनत करनी पड़ती है. उसके बाद शरीर भी बेचना पड़ता है वहां ठेकेदारों को. काम देने के बदले दरिंदे करते हैं बेटियों के जिस्म का सौदा.
ये नरकलोक है चित्रकूट में, जहां गरीबों की नाबालिग बेटियां खदानों में काम करने के लिए मजबूर हैं, लेकिन ठेकेदार और बिचौलिये उन्हें काम की मजदूरी नहीं देते. मजदूरी पाने के लिए इन बेटियों को करना पड़ता है अपने जिस्म का सौदा. वह भी सिर्फ 200-300 रुपयों के लिए.
सौम्या जैसी बच्चियां खदानों में पत्थर उठाने का काम करती हैं. पढ़ाई लिखाई की उम्र में ये परिवार को पालने का बोझ अपने कंधों पर उठा रही हैं. मेहनताने के लिए अपने तन का सौदा करना पड़ता है. कुछ बोली तो फिर पहाड़ से फेंक देने की धमकी मिलती है. जो शारीरिक शोषण करता है वह कभी अपना नाम नहीं बताता. कहता है ऐसे शरीर दोगी तभी काम पर लगाएंगे.
मां-पिता भी अपनी बेटियों के इस दर्द का जहर चुपचाप पी लेते हैं. क्योंकि पेट की आग के आगे कुछ नहीं कर पाते. सौम्या की मां घर के अंदर से कहती हैं कि खदानों पर दरिंदे कहते हैं कि काम में लगाएंगे जब अपना शरीर दोगे तब. मजबूरी है पेट तो चलाना है. 300-400 दिहाड़ी है. कभी 200 कभी 150 देते हैं. बेटियां काम करके आने के बाद बताती हैं कि आज उनके साथ ऐसा हुआ लेकिन हम कुछ नहीं कर पाते. घर चलाना है, परिवार भूखे ना सोए. पापा का इलाज भी कराना है.
ऐसी ही कहानी है 14 साल की है बिंदिया की. जो चित्रकूट के कर्वी में रहती है. पिता नहीं हैं. स्कूल जाने की उम्र में ये बेटी पहाड़ों की खदानों में पत्थर ढोती है. बिंदिया बताती है कि पहाड़ के पीछे बिस्तर लगा है नीचे की तरफ. सब हमें लेकर जाते हैं वहां. एक-एक करके सबकी बारी आती है. हमारे बाद कोई दूसरी लड़की. मना करने पर मारते हैं. गाली देते हैं. हम चिल्लाते हैं, रोते हैं, पर सब सहना पड़ता है. दुख तो बहुत होता है कि मर जाएं, गांव में ना रहें. लेकिन बिना रोटी के जिंदा कैसे रहें.
बिंदिया कहती है कि उनसे कहा जाता है कि जो पैसे तुमको दिए हैं उससे मेकअप करके आओ. 100 रुपए में क्या होता है. लॉकडाउन में हालत और खराब हो गई थी. आए दिन हवस का शिकार बनती थीं ये बेटियां. परिवार पालने के लिए रोजाना दो-तीन सौ रुपये कमाने पड़ते हैं, और इसके लिए इसे अपना जिस्म दरिंदों के आगे परोसना पड़ता है.
बिंदिया कि मां बताती है कि जब से मजदूरी कर रहे हैं. अभी तक नहीं बताया. 3 महीने काम बंद था. 3 महीने से छटपटा रहे हैं. भाग रहे हैं. कैसे हमारा पेट पले, हमारी औलाद का पेट पले. मां को या घर के किसी बड़े को लड़कियों के साथ काम करने के लिए नहीं जाने देते.
चित्रकूट की पहाड़ियों पर करीब 50 क्रशर चलते हैं. भुखमरी और बेरोजगारी की मार झेल रहे यहां के कोल समाज के लिए यही रोजी रोटी का सहारा है. इनकी गरीबी का फायदा उठाकर बिचौलिये और ठेकेदार बच्चियों का शोषण करते हैं. आज तक की टीम पहुंची तो कोई बोल नहीं रहा था. सब डरीं हुई थीं. खदानों में काम करने वाली ज्यादातर लड़कियों की उम्र 10 से 18 के बीच होती है. लड़कियों की मेहनत-मजदूरी के बावजूद उन्हें तब तक मेहनताना नहीं मिलता, जब तक कि वो ठेकेदार और उसके साथियों की बात मानने के लिए राजी न हो जाएं.
Comments
Leave Comments