अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ी गई आज़ादी की लड़ाई कई वर्षों तक चली. इस दौरान अलग-अलग वाकये हुए, कई छोटी-बड़ी घटनाएं हुईं जो इतिहास में दर्ज हो गईं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जब ‘असहयोग आंदोलन’ वापस ले लिया था, तब एक नई पीढ़ी को काफी झटका लगा था. क्योंकि बड़ी उम्मीदों के साथ देश में एक बड़ी संख्या में लोग इस आंदोलन के साथ जुड़ गए थे. इसी के साथ एक नई घटना की नींव पड़ गई थी, जिसे इतिहास में काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है. इस घटना ने अंग्रेज़ों को बड़ा परेशान किया और एक संदेश पहुंचा दिया कि हिन्दुस्तानी क्रांतिकारी उनसे लोहा लेने के लिए हर तरह के तरीके अपना सकते हैं.
काकोरी कांड के लिए हमेशा रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह समेत कुल दस क्रांतिकारियों को याद किया जाता है. यानी काकोरी कांड को अंजाम देने वालों में अधिकतर लोग ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ से जुड़े थे. जिनमें से कुछ को बाद में इस मामले के लिए फांसी भी हो गई. इस पूरे कांड के दौरान जर्मनी के माउज़र का इस्तेमाल किया गया, करीब चार हजार रुपये लूटे गए थे.
9 अगस्त 1925 को हुई इस घटना के ऊपर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने काफी विस्तार से लिखा है. उन दिनों छपने वाली पंजाबी पत्रिका ‘किरती’ में भगत सिंह ने एक सीरीज़ शुरू की थी, जिसमें वो काकोरी कांड के हीरो का परिचय पंजाबी भाषा में लोगों से करवाते थे. इसके अलावा उस पूरी घटना से जुड़ी बातें साझा करते थे.
अपने कई लेखों में भगत सिंह ने किरती में काकोरी कांड से जुड़े सभी दस मुख्य और अन्य साथियों का जिक्र किया है, साथ ही उनका पूरा परिचय भी लिखा है. इनमें शचींद्रनाथ सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल,राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, मन्मथनाथ गुप्त, जोगेशचंद्र चटर्जी, गोविंद चरणकार, सुरेशचंद्र भट्टाचार्य, राजकुमार, विष्णु शरण दुब्लिस, रामदुलारे, अशफाक उल्ला खां के बारे में लिखा गया.
मई, 1927 को ‘काकोरी के वीरों से परिचय’ नाम के लेख में उस किस्से के बारे में भगत सिंह ने लिखा है, ‘’9 अगस्त, 1925 को काकोरी स्टेशन से एक ट्रेन चली. ये करीब लखनऊ से 8 मील की दूरी पर था, ट्रेन चलने के कुछ ही देर बाद उसमें बैठे 3 नौजवानों ने गाड़ी रोक दी. उनके ही अन्य साथियों ने गाड़ी में मौजूद सरकारी खजाने को लूट लिया. उन तीन नौजवानों ने बड़ी चतुराई से ट्रेन में बैठे अन्य यात्रियों को धमका दिया था और समझाया था कि उन्हें कुछ नहीं होगा बस चुप रहें. लेकिन दोनों ओर से गोलियां चल रही थीं और इसी बीच एक यात्री ट्रेन से उतर गया और उसकी गोली लगकर मौत हो गई’’.
‘...इसके बाद अंग्रेजों ने इस घटना की जांच बैठा दी. सीआईडी के अफसर हार्टन को जांच में लगा दिया गया. उसे मालूम था कि ये सब क्रांतिकारी जत्थे का किया धरा है, कुछ वक्त बाद ही क्रांतिकारियों की मेरठ में होने वाली एक बैठक का अफसर को पता लग गया और छानबीन शुरू हो गई. सितंबर आते-आते गिरफ्तारियां होनी शुरू हो गईं, राजेंद्र लाहिड़ी को बम कांड में दस साल की सज़ा हुई, अशफाक उल्ला, शचींद्र बख्शी भी बाद में पकड़े गए’
Comments
Leave Comments