हाथरस में एक दलित लड़की के साथ गैंगरेप के बाद की गई हत्या से देश का सियासी माहौल गर्म है. पीड़िता के गांव जाने की विपक्षी नेताओं में होड़ लगी है और उनके निशाने पर योगी सरकार है. यूपी में महिला अपराध का ये पहला मामला नहीं है. देश के बाकी हिस्सों से भी गैंगरेप और हत्या की ऐसी ही खबरें आती रहती हैं, फिर भी हाथरस की घटना ने जिस तरह का सियासी भूचाल खड़ा किया है उससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार मामले की गंभीरता का अंदाजा लगाने में चूक गई और योगी सरकार ने एक राजनीतिक मुद्दा बन चुकी घटना को प्रशासनिक तौर पर सुलझाने की कोशिश कर विपक्ष को जगह बनाने का मौका दे दिया.
हाथरस कांड को लेकर जिला प्रशासन खासकर पुलिस की ओर से शुरुआत में गलतियां की गईं. घटना के 9 दिन के बाद बलात्कार की धाराएं जोड़ना, 11 दिन बाद फॉरेंसिक सैंपल लेना, पीड़िता की मौत के बाद शव को परिजनों को न सौंपना, उसका आधी रात में खुद ही अंतिम संस्कार कर देना ऐसे कदम रहे जिसने मीडिया और विपक्षी दलों का ध्यान इस केस की ओर खींचा. उसके बार परिवार से जिला प्रशासन के अफसरों का जिस तरह का बर्ताव रहा उसने गम और गुस्से का ऐसा तूफान खड़ा किया कि लखनऊ तक सरकार हिल गई.
दूसरा रोहित वेमुला बना हाथरस कांड
सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार इस घटना के राजनीतिक नुकसान का अंदाजा लगाने में चूक कर गई. हाथरस में पीड़िता दलित और गरीब परिवार से थी और इन दो तथ्यों ने उसे मोदी सरकार का दूसरा रोहित वेमुला बना दिया. रोहित वेमुला को लेकर विपक्ष ने केंद्र की मोदी सरकार पर जबर्दस्त प्रहार किए थे. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सार्वजनिक रूप से वेमुला की मौत पर दुख जताना पड़ा था और वो भावुक तक हो गए थे. हाथरस कांड की पीड़िता को लेकर भी विपक्ष काफी हद तक ये माहौल बनाने में कामयाब रहा है.
सरकार से एक के बाद चूक होती गई
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी का हाथरस कांड की पीड़िता के परिजनों से मिलने उसके गांव जाने का फैसला करना इस मामले का सियासी टर्निंग प्वाइंट रहा. ये सबसे बड़ा सियासी टर्निंग प्वाइंट बना राहुल-प्रियंका को नोएडा में ही रोकने के योगी सरकार के कदम से. पुलिस से जूझते राहुल-प्रियंका की जो तस्वीरें नेशनल मीडिया में आईं उन्होंने जबर्दस्त सुर्खियां बटोरीं. मीडिया में मामला बढ़ा तो यूपी सरकार दूसरी गलती कर बैठी और मीडिया की ही गांव में एंट्री बैन कर दी.
हाथरस के डीएम का वीडियो सामने आया, जिसमें दावा किया गया कि वो पीड़िता के परिवार को ही धमका रहे हैं. इसने यूपी सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करने के लिए विपक्ष को भरपूर मसाला दे दिया. योगी सरकार डैमेज कंट्रोल में भी दिखी. पहले केस की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया. फिर सीबीआई जांच की सिफारिश की गई. पुलिस के बड़े अफसरों को सस्पेंड किया गया और मुआवजे की राशि भी 10 लाख से बढ़ाकर 25 लाख कर दी गई. पीड़िता के परिवार को सरकारी घर, नौकरी के वायदे भी किए गए लेकिन मामला हाथ से निकल चुका था.
देश भर में विरोध प्रदर्शन
फिलहाल हाथरस का मामला यूपी की सीमाओं से निकलकर बाहर जा चुका है. देश भर में विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं. दिल्ली में इंडिया गेट से लेकर जंतर-मंतर पर दलित बेटी के इंसाफ के लिए लोग एकजुट होकर सरकार के खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं. वक्त बिहार चुनाव और अलग-अलग राज्यों में उपचुनाव का है जहां दलित वोटर अच्छी तादाद में हैं. योगी सरकार अब इस उबाल को साजिश करार दे रही है. धड़ाधड़ एफआईआर दर्ज कराई जा रही हैं. पीड़िता के परिवार तक के नार्को टेस्ट की बात कही जा रही है.
कोर्ट के चलते सरकार पर बढ़ा दबाव
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार काशी यादव कहते हैं कि इस मामले में हाई कोर्ट ने जिस तरह से स्वत: संज्ञान लिया, उससे भी सरकार पर दबाव पड़ा. हाई कोर्ट ने जिस तरह का आदेश जारी किया है, उससे पीड़ित पक्ष से सहानुभूति दिखाई है. ऐसे में सरकार को यह भी लगा होगा कि कहीं कोर्ट खुद ही सीबीआई जांच का आदेश न दे दे. जहां तक पीड़ित परिवार तक लोगों और मीडिया को पहुंचने से रोकने का सवाल है, वह तो बिल्कुल ही गैर-जरूरी और मनमाना फैसला था. इस तरह के मुद्दों पर यह सरकार अक्सर ऐसा करती है और बाद में उसे बैकफुट पर आना पड़ता है. उन्नाव मामले में सरकार ऐसा ही करती रही, लेकिन कोर्ट के दखल के बाद योगी सरकार को फैसला लेना पड़ा.
बीजेपी का बिगड़ता समीकरण
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि योगी सरकार ने जिस तरह से प्रशासन को जो खुली छूट दे रखी है, उसके चलते परेशानी खड़ी हो रही है. योगी सरकार को अपने नेताओं से ज्यादा प्रशासन पर भरोसा है. ऐसे में सरकार के पास सूचनाएं या तो पहुंच नहीं रही हैं या फिर सही नहीं पहुंच रही हैं. सरकार ने डीएम को भी हटाने से इनकार कर दिया जबकि तमाम फैसलों के पीछे उन्हीं का आदेश था. वो कहते हैं कि इस घटना से बीजेपी को कोर वोटबैंक वाल्मिकी के खिसकने का भी खतरा है, जो एक समय कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है.
कासिम कहते हैं कि कांग्रेस अपने नेताओं को हाथरस पर लगातार सक्रिय रखे हुए हैं ताकि दलित समुदाय को वापस अपने खेमे में लाया जा सके. बीजेपी और योगी सरकार के लिए राजनीतिक रूप से असमंजस की स्थिति है क्योंकि पीड़िता वाल्मीकि समाज से ताल्लुक रखती थी जबकि आरोपी ठाकुर है. बीजेपी ने यूपी, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में तीन ठाकुर नेताओं को मुख्यमंत्री बनाकर सवर्णों के बीच एक संदेश देने का काम किया था, लेकिन दलितों की नाराजगी उसके लिए चिंता का सबब बनती जा रही है.
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