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भारत

करगिल युद्ध जैसी चुनौतियों में सुदूर इलाकों की सटीक सूचना के लिए विदेशी एजेंसी पर नहीं होना होगा निर्भर 

केंद्र सरकार ने देश की मैपिंग व भू स्थानिक नीतियों में परिवर्तन कर इन्हें सरल करने की घोषणा की है। इससे करगिल युद्ध जैसी चुनौतीपूर्ण स्थितियों सुदूर इलाकों की सटीक सूचना के लिए विदेशी एजेंसियों पर निर्भरता खत्म होगी। साथ ही निजी कंपनियों के इस क्षेत्र में हिस्सेदारी बढ़ने से इस क्षेत्र में नवोन्मेष बढ़ेगा और विभिन्न लोकेशन आधारित स्टार्टअप्स को भी बेहतर सेवाएं देने में मदद मिलेगी। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर बताया कि सरकार ने आत्मनिर्भर भारत को ध्यान में रखते हुए यह बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत देश में नक्शे तैयार करने की नीति उदार होगी। इसके तहत भू-स्थानिक डाटा तैयार करना व उसे सरकार से हासिल करना आसान हो सकेगा। इससे न सिर्फ कूटनीतिक स्तर पर बल्कि शोध संस्थानों से लेकर किसानों तक को मदद मिलेगी।


अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में भी होगा फायदा 
विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री हर्ष वर्धन ने दावा किया कि भूस्थानिक डाटा को पाने और तैयार करने के नियम आसान करने से अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को भी फायदा होगा। उनके अनुसार साल 2030 तक भू-स्थानिक डाटा का क्षेत्र करीब 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।

अभी ऐसे होता है काम
अब तक किसी भौगोलिक सर्वे, क्षेत्रीय नक्शा निर्माण व इनके आधार पर मोबाइल व वेब आधारित एप्लीकेशन बनाने के लिए सरकार से पूर्व अनुमति लेनी होती थी। हर्ष वर्धन के अनुसार देश के अधिकृत नक्शे तैयार करने वाले सर्वे ऑफ इंडिया संस्थान को भी कई एजेंसियों से अनुमति लेनी होती है।

अब क्या हो सकेगा?
विज्ञान एवं तकनीकी सचिव आशुतोष शर्मा के अनुसार अब विभिन्न अनुमति, सुरक्षा क्लीयरेंस, लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी। साथ ही सरकार से भू-स्थानिक डाटा व नक्शे हासिल करना आसान होगा।

क्या है भू-स्थानिक डाटा
जियो-स्पेशियल या भूस्थानिक डाटा दरअसल किसी खास क्षेत्र में धरती की सतह भौगोलिक स्थिति और वहां मौजूद सभी संरचनाओं की जानकारी है। इसमें किसी भी खास जगह मौजूद पहाड़, गड्ढे, खाई, नदी, तालाब, पोखर, खेत, कच्चे-पक्के निर्माण, हरियाली, कोई अन्य प्राकृतिक संरचनाएं, इनकी लोकेशन, पता, शामिल होते हैं।

करगिल युद्ध में लेनी पड़ी थी विदेशी मदद
करगिल युद्ध के दौरान सरकार को दुश्मन का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए उसकी सटीक लोकेशन की जानकारी चाहिए थी। दुश्मन हमारी सेना से ऊपर की चौकियों पर थी और उसे देख पाना मुश्किल था। तब विदेशी जियोस्पेशियल एजेंसियों की मदद लेनी पड़ी थी। लेकिन बीते एक दशक में इस दिशा में काफी काम हुआ है। इसी का नतीजा है कि उड़ी हमले के बाद एलओसी के पास सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक में जियो स्पेशियल डाटा  की मदद से ही दुश्मन का सफाया हुआ था। 

ओला, ऊबर, जोमैटो इसी डाटा से करते हैं काम 
ओला, ऊबर और जोमैटो जैसे एप इसी जियो स्पेशियल डाटा के आधार पर काम करते हैं। इस क्षेत्र में विनियमन नीतियों के सरलीकरण से स्थिति और सुधरेगी। 

किसे और क्या लाभ होगा
स्टार्टअप, सरकारी प्राइवेट सेक्टर के संस्थान व एजेंसियां, शोध संस्थान, किसान आदि इनोवेशन कर सकेंगे। ज्यादा रोजगार पैदा होगा। उदाहरण के लिए मोबाइल मैपिंग, रास्तों व पानी के स्रोतों का सर्वे इसके जरिये हो सकेगा। वहीं अब तक किसी नए शहर या गांव में रास्ता खोजने के लिए गूगल मैप जैसे विकल्प ही हमारे पास होते हैं, लेकिन नए इनोवेशन होंगे तो हम क्षेत्रीय और भारतीय विकल्प तैयार कर पाएंगे। सुरक्षा मामलों को छोड़कर जनता के ही धन से सरकार द्वारा अब तक जुटाया गया डाटा भी नागरिकों को मिलेगा। 

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