आम भारतीय की नज़र में यहाँ सिर्फ़ एक बग़ावत हुई थी. 1857 में जब भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया था. एटली जिस बग़ावत का ज़िक्र कर रहे थे वो 18 फ़रवरी 1946 को हुई थी, जिसमें क़रीब 2000 भारतीय नौसैनिकों ने भाग लिया था और सुरक्षा बलों द्वारा चलाई गई गोली में क़रीब 400 लोगों की मौत हो गई थी.
इन विद्रोही नौसैनिकों ने बंबई के आसपास के समुद्र में खड़े पोतों पर कब्जा कर उनकी चार इंच की तोपों का मुंह गेटवे ऑफ़ इंडिया और ताज होटल की तरफ़ मोड़ दिया था और अंग्रेज़ों को चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें नुक़सान पहुँचाया गया तो इन इमारतों को ढहा दिया जाएगा.
विद्रोह की शुरुआत हुई 18 फ़रवरी 1946 को जब संचार प्रशिक्षण केंद्र एचएमआईएस तलवार के युवा नौसैनिकों ने नारा लगाया 'खाना नहीं तो काम नहीं.' उन्होंने ख़राब खाना दिए जाने के विरोध में अफ़सरों का हुक्म मानने से इनकार कर दिया.
लेफ़्टिनेंट कमांडर जी डी शर्मा अपनी किताब 'अनटोल्ड स्टोरी 1946 नेवेल म्यूटिनी लास्ट वॉर ऑफ़ इंडेपेंन्डेंस ' में लिखते हैं, 'उस ज़माने में नौसैनिकों को नाश्ते में दाल और डबल रोटी दी जाती थी. हर दिन एक ही तरह की दाल परोसी जाती थी. दिन के खाने में भी उसी दाल में पानी मिला कर चावल के साथ परोस दिया जाता था. 17 फ़रवरी की शाम को ही 29 नौसैनिकों ने विरोध-स्वरूप खाना नहीं खाया. उस समय ड्यूटी ऑफ़िसर बत्रा और सचदेव ने न तो उनकी शिकायत को दूर करने की कोशिश की और न ही इसकी सूचना अपने आला अफ़सरों को दी. ये नौसैनिक बिना खाना खाए ही सो गए. अगले दिन नाश्ते में भी वही खराब दाल परोसी गई. बड़ी संख्या में नौसैनिकों ने नाश्ता करने से इनकार कर दिया और नारे लगाते हुए मेस से बाहर निकल आए.'
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