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राजनीति

बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर हमें क्या बताती है?

 

यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की क़ीमत का, अपने करियर के ख़त्म होने का और यहां तक कि अपनी जान जाने का ‘डर’.

अब जब महिला पहलवानों द्वारा अप्रैल में दायर की गई यौन उत्पीड़न की एफ़आईआर की जानकारी सामने आई है, तो उसमें भी हर पन्ने पर उस 'डर' का ज़िक्र है.

महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के कई मामलों पर काम कर चुकीं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा, “नाबालिग समेत सभी महिलाओं के ब्यौरों में उनके उत्पीड़न के लिए बार-बार ताक़त और सत्ता के ग़लत इस्तेमाल का उल्लेख है जो आईपीसी और पॉक्सो दोनों के तहत अपराध की श्रेणी में आता है.”

कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी के सांसद बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ एक नाबालिग समेत सात महिला पहलवानों ने दो एफ़आईआर दायर कराई थी.

एफ़आईआर में सिंह के अलावा, कुश्ती महासंघ के कई पहलवानों ने उनके साथ काम कर रहे एक और वरिष्ठ सदस्य के ख़िलाफ़ उत्पीड़न में ‘अबेटमेंट’ यानी साथ देने का आरोप लगाया है.

बृजभूषण शरण सिंह और उस सदस्य ने सभी आरोपों से इनकार किया है.

सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंग के मुताबिक, “एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ कई महिलाओं की शिकायतें और उनमें एक तरह का पैटर्न उभर कर आना, उस व्यक्ति के चरित्र के बारे में बताता है. साथ ही शिकायतकर्ताओं के आरोपों को विश्वसनीयता भी देता है.”

ये दो एफ़आईआर महिला पहलवानों के थाने जाने पर नहीं, बल्कि उनके सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने और कोर्ट के दिल्ली पुलिस को नोटिस दिए जाने के जवाब में दायर हुईं.

एफ़आईआर में सभी शिकायतकर्ताओं ने जनवरी-फ़रवरी के दौरान ‘ओवरसाइट कमेटी’ द्वारा की गई जांच पर भी सवाल उठाए हैं और 'डर' जताया है कि 'वो निष्पक्ष नहीं होगी.'

 

एफ़आईआर में यौन उत्पीड़न से जुड़ी धाराओं 354, 354A, 354D के अलावा पॉक्सो क़ानून की धारा (10) 'ऐग्रवेटेड सेक्सुअल असॉल्ट' यानी 'गंभीर यौन हिंसा' है.

इन धाराओं में औरत की सहमति के बिना सेक्सुअल मंशा से उसकी सहमति के बिना उसे छूने की कोशिश करना, उससे यौन संबंध बनाने की मांग करना, अश्लील बातें करना, बार-बार पीछा करना इत्यादि शामिल हैं.

एफ़आईआर में साल 2012 से 2022 के बीच घटी जिन अलग-अलग यौन उत्पीड़न की वारदातों का ब्यौरा है उनमें कई एक जैसी बातें दिखाई देती हैं.

हिंसा का तरीका हो, उसके लिए ताक़त का इस्तेमाल और मना करने पर परेशान करने या दंड देने के तरीके हों.

इंदिरा जयसिंग के मुताबिक़, शिकायतों में समानता भर उनकी सच्चाई का प्रमाण नहीं माना जा सकता, “हर वारदात की पुष्टि के लिए तहक़ीक़ात ज़रूरी है और सबूतों और तथ्यों के बिनाह पर किसी मामले में अपराध साबित करना आसान हो सकता है किसी में नहीं.”

वृंदा ग्रोवर के मुताबिक़, इस तहक़ीक़ात के लिए बृज भूषण शरण सिंह के बयान लेना काफ़ी नहीं है, उनकी हिरासत ज़रूरी है.

वो कहती हैं, “एफ़आईआर में जो ब्यौरे हैं उनकी पुष्टि के लिए पुलिस हिरासत में पूछताछ की, कॉल रिकॉर्ड निकलवाने की, गवाहों के बयान लेने की और फ़ोन ज़ब्त करने जैसे कदम उठाने की ज़रूरत है जिसे करने के लिए दिल्ली पुलिस इच्छुक नहीं दिखती.”

एफ़आईआर में दिए गए बयौरों में कुश्ती महासंघ के प्रशासन में 12 साल से अध्यक्ष होने की वजह से बृजभूषण शरण सिंह के प्रभुत्व और ताकत का बार-बार उल्लेख है.

पहलवानों के मुताबिक़, उत्पीड़न के फौरन बाद शिकायत ना कर पाने की वजह यही थी. कई शिकायतकर्ताओं के मुताबिक़, उनके साथ ये घटनाएं उनके करियर की शुरुआत में घटीं जिस वजह से वो अपनी बात कहने का साहस नहीं जुटा पाईं.

पहलवानों के मुताबिक़, यौन संबंध बनाने के प्रस्ताव को ठुकराने भर से उन्हें और प्रशासन के क़ायदों का ग़लत इस्तेमाल कर कई तरीक़े से परेशान किया गया.

एक पहलवान के मुताबिक़, एफ़आईआर दर्ज होने के बाद उन्हें धमकियां मिलने लगीं.

बैंगलुरु स्थित वरिष्ठ वकील अनीता एब्राहिम के मुताबिक़, धमकियां मिलना गिरफ्तारी की बिनाह हो सकता है.

अनीता कहती हैं, “आईपीसी और पॉक्सो की इन धाराओं को साथ देखें तो पुलिस को गिरफ्तारी करनी चाहिए - जैसा इन्होंने कहा कि अभियुक्त ताक़तवर है, दबाव बना रहा है और धमकियां दे रहा है, तो इस आधार पर गिरफ्तारी ज़रूरी हो जाती है.”

अनीता के मुताबिक़, आमतौर पर एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ वयस्कों और नाबालिग के यौन उत्पीड़न की इतनी शिकायतें सामने आने पर गिरफ्तारी का कदम उठा लिया जाता है.

वो कहती हैं, “ये राजनीतिक दमखम की वजह से अपराध करने की छूट यानी इम्प्यूनिटी दर्शा रहा है, और पूरे देश के लिए ग़लत उदाहरण पेश कर रहा है.”

एफ़आईआर दर्ज करवाने का कदम उठाने से पहले पहलवानों ने सबसे पहले जनवरी में यौन उत्पीड़न की शिकायतों के बारे में आवाज़ उठाई थी.

जिसके बाद खेल मंत्रालय ने इनकी जांच के लिए ओवरसाइट कमेटी का गठन किया था. एफ़आईआर में हर पहलवान ने इस कमेटी पर भरोसा ना होने की बात कही है.

पहलवानों के मुताबिक़, यही वजह है कि उन्होंने पुलिस जांच का रुख़ किया.

यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून बनाने में अहम भूमिका निभाने वाली वकील नैना कपूर के मुताबिक़, इस ‘ओवरसाइट कमेटी’ की कानूनी वैधता ही नहीं है.

उन्होंने कहा, “यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत जब कमेटी बनाई जाती है तब उसके सदस्यों को ऐसी शिकायतों की सुनवाई करने की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि ऐसे संजीदा मामलों पर सोच समझ कर फ़ैसला ले सकें.”

कुश्ती महासंघ में यौन उत्पीड़न रोकथाम क़ानून के तहत अनिवार्य ‘इंटर्नल कमेटी’ का गठन नहीं हुआ था और पिछले तीन महीनों में भी नहीं हुआ है.

पहलवानों की शिकायतों के बाद से संघ के रोज़मर्रा के काम को पहले ‘ओवरसाइट कमेटी’ और बाद में ‘एडवाइज़री कमेटी’ देख रही है.

संघ की मौजूदा टीम का कार्यकाल ख़त्म हो चुका है और नई टीम के चुनाव नहीं हुए हैं.

नैना कपूर कहती हैं, “इंटर्नल कमेटी का मक़सद है काम की जगह को सुरक्षित बनाना ताकि यौन उत्पीड़न की रोकथाम हो और ये समझ बने कि ऐसा बर्ताव समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और उस पर ससपेंड होने, निकाले जाने इत्यादि जैसी सज़ा होगी.”

वृंदा ग्रोवर के मुताबिक़ भी जांच में भरोसा वापस लाने के लिए ऐसे नए तरीके से इंटर्नल कमेटी का गठन ज़रूरी है जिसमें कुश्ती महासंघ और सरकार का दखल ना हो.

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