logo

  • 24
    06:56 pm
  • 06:56 pm
logo Media 24X7 News
news-details
बिजनेस

सूअर की चर्बी से बने विमान के ईंधन पर क्यों जताई जा रही चिंता

जानवरों की चर्बी को बेकार माना जाता है, इसलिए विमानों के ईंधन में इनका इस्तेमाल कम कार्बन फुटप्रिंट के चलते भी मुफीद माना जाता है.

एक अनुमान के मुताबिक़, ईंधन बनाने के लिए जानवरों की चर्बी की मांग 2030 तक तीन गुनी होने की संभावना है और इसका एक बड़ा हिस्सा एयरलाइंस में इस्तेमाल होगा.

लेकिन एक्सपर्ट्स को आशंका है कि इसकी वजह से जानवरों की चर्बी की आपूर्ति में कमी हो जाएगी और अन्य उद्योगों की पाम ऑयल पर निर्भरता बढ़ जाएगी जो कि कार्बन उत्सर्जन के बड़े स्रोतों में से एक है.

दूसरी ओर एयरलाइंस पर भी कार्बन उत्सर्जन को कम करने का भारी दबाव है, क्योंकि ये जीवास्म ईंधन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करती हैं.

ब्रसेल्स के एक क्लीन ट्रांसपोर्ट कैंपेन ग्रुप ‘ट्रांसपोर्ट एंड एनवायरोन्मेंट’ ने अपने अध्ययन में कहा है कि रोज़ इतने जानवर नहीं मारे जा रहे हैं कि एयरलाइंस की मांग पूरी की जा सके.

ट्रांसपोर्ट एंड एनवायरान्मेंट के मैच फ़िंच का कहना है, “जानवरों की चर्बी का स्रोत असीमित नहीं है.”

उनके मुताबिक़, “अगर विमानन की ओर से इसकी अत्यधिक मांग बढ़ेगी तो उन उद्योगों को कोई दूसरा विकल्प ढूंढना पड़ेगा जो इस पर पहले से निर्भर हैं. और यह विकल्प है पाम ऑयल. इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से विमानन उद्योग पाम ऑयल के इस्तेमाल के बढ़ने के लिए ज़िम्मेदार होगा.”

बढ़ते कार्बन उत्सर्जन को पाम ऑयल के अत्यधित इस्तेमाल से जोड़ा जाता है क्योंकि बड़ी मात्रा में कार्बन स्टोर करने वाले जंगलों को नए पौधारोपण के लिए साफ़ किए जाते हैं.

जानवरों की चर्बी ईंधन के रूप में इस्तेमाल होती है, ये तथ्य कई लोगों को हैरान कर देगा.

सदियों से इस तरह की चर्बियों का इस्तेमाल मोमबत्ती, साबुन और कॉस्मेटिक बनाने में किया जाता रहा है.

हालांकि 20 साल से जानवरों के उत्पादों या खाना बनाने वाले तेल से बायोडीज़ल बनाया जाता है और ब्रिटेन में इसका चलन बढ़ा है.

एक नए अध्ययन के अनुसार, पूरे यूरोप में जानवरों की चर्बी से ईंधन बनाने में 2006 से ही कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है.

इसका एक बड़ा हिस्सा ट्रकों और कारों में बायोडीज़ल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिसे टिकाऊ ईंधन की श्रेणी में रखा गया है और नियमों के मुताबिक इनका कार्बन फुटप्रिंट बहुत ही कम होता है.

लेकिन ब्रिटेन और यूरोपीय संघ की सरकारें विमानन क्षेत्र को अधिक स्वच्छ ईंधन मुहैया कराने के लिए इस तरह के स्रोतों को अधिक इस्तेमाल करने पर विचार कर रही हैं.

और इसके लिए ऐसे भी नियम बनाने की कोशिश हो रही है जिसके तहत एयरलाइंस को अपने ईंधन में टिकाऊ एविएशन फ्यूल (एसएएफ़) का अनुपात बढ़ाना होगा.

ब्रिटेन में यह मात्रा 2030 तक 10% और यूरोपीय संघ में 6% के बराबर हो जाएगी. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस योजना से जानवरों की चर्बी वाले मार्केट पर दबाव बढ़ जाएगा.

हालांकि ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के नज़रिए में बहुत अंतर है. ब्रिटेन में अच्छी गुणवत्ता वाली जानवरों की चर्बी की मात्रा तय करने की बात चल रही है जबकि यूरोपीय संघ में इसे बढ़ावा दिया जाएगा क्योंकि इसके इस्तेमाल से ग्रीनहाउस गैस में कमी लाने का लक्ष्य पूरा हो सकता है.

मांग बढ़ने से क़ीमतें भी बढ़ेंगी और इस वजह से ब्रिटेन से इसका एक्सपोर्ट भी बढ़ेगा, जिसकी अपनी अलग जटिलताएं होंगी.

ट्रांसपोर्ट एंड एनवायरोन्मेंट के अनुसार, पेरिस से न्यूयॉर्क तक जाने के लिए एक विमान को जितने ईंधन की ज़रूरत होती है, वो 8,800 सुअरों की चर्बी के बराबर है.

चूंकी ब्रिटेन विमान ईंधन में जानवरों के उत्पाद और इस्तेमाल किए गए कुकिंग ऑयल की मात्रा तय करने वाला है, इसलिए इन ईंधनों में जानवरों की चर्बी कम होगी.

यूरोपीय संघ में एयरलाइंस के लिए 2030 तक 6% स्वच्छ या ग्रीन ईंधन इस्तेमाल करना अनिवार्य होगा, जिसमें 1.2% ई-केरोसिन होगा. मान लीजिए बाकी बचा 4.8% का पूरा हिस्सा जानवरों की चर्बी से आता है तो हर ट्रांसअटलांटिक उड़ान के लिए 400 सूअरों की चर्बी की ज़रूरत पड़ेगी.

अगर विमानन क्षेत्र जानवरों की चर्बी का अधिक इस्तेमाल करता है तो प्रभावित होने वाले उद्योगों में पालतू जानवरों का फ़ूड बनाने वाले उत्पादक शामिल होंगे.

इस समय ब्रिटेन के 3.8 करोड़ पालतू जानवरों के फ़ूड बनाने के लिए ये अभी बेहतर गुणवत्ता के जानवरों की चर्बी का एक बड़ा हिस्सा इस्तेमाल करते हैं.

यूके पेट फ़ूड के डिप्टी चीफ़ एक्जीक्युटिव निकोल पैले का कहना है, “ये हमारे लिए वाकई बहुत अहम कच्चा माल है और इसका विकल्प तलाशना बहुत मुश्किल है और इनका पहले ही बहुत टिकाऊ तरीक़े से इस्तेमाल किया जा रहा है.”

उनके मुताबिक़, “इसलिए इस कच्चे माल को बॉयो ईंधन के लिए इस्तेमाल में लाने से और दिक्कतें पैदा होंगी. सबसे पहले तो यह हमें विमानन उद्योग की प्रतिद्वंद्विता में ला खड़ा करेगा. और जब क़ीमतों की बात आएगी तो पेट फ़ूड इंडस्ट्री विमानन उद्योग का मुकाबला नहीं कर पाएगी.”

यूरोपीय संघ इस दिशा में और आगे बढ़ चुका है लेकिन ब्रिटेन विमान ईंधन में जानवरों की चर्बी के अनुपात को तय करने के बारे में विचार-विमर्श कर रहा है.

विमानन क्षेत्र में जानवरों की चर्बी और इस्तेमाल हुए कुकिंग ऑयल पर प्रतिबंध लगाने या इसकी सीमा तय करने के बारे में सरकार तैयारी कर रही है क्योंकि वो गैरज़रूरी नतीजे नहीं चाहती.

बॉयो फ्यूल उद्योग में बहुत से लोग इस बात से चिंतित हैं कि प्रस्तावित बदलावों से जानवरों की चर्बी का दूसरे तरीके से इस्तेमाल बढ़ जाएगा.

ब्रिटेन और यूरोप में वेस्ट आधारित बॉयोडीज़ल उत्पादक एर्जेंट एनर्जी के डिकॉन पोस्नेट का कहना है, “अगर आप विमानों में जानवरों की चर्बी और इस्तेमाल किए गए कुकिंग ऑयल की मात्रा बड़े पैमाने पर बढ़ाएंगे तो ये दूसरे क्षेत्र को प्रभावित करेगा.”

उनके मुताबिक़, “इसलिए अगर आप विमानन क्षेत्र को टिकाऊ बनाए रखना चाहते हैं तो तेज़ी से काम करना होगा. लेकिन इस पर निर्णय तो सरकार को ही लेना होगा.”

 

You can share this post!

Comments

Leave Comments