बीमारी या एक्सीडेंट के मामलों में कई बार जान बचाने के लिए ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. जरूरत के समय ब्लड बैंक में ब्लड मौजूद रहे इसके लिए लोगों को स्वेच्छा से ब्लड डोनेट करने के लिए प्रेरित किया जाता है. इस विषय में लोगों को जानकारी देने और ब्लड डोनेशन (Blood donation) के लिए प्रेरित करने के लिए हर वर्ष पूरे विश्व में 14 जून को वर्ल्ड ब्लड डोनर डे (World blood Donor Day) मनाया जाता है. ब्लड डोनेशन कई प्रकार (Types of Blood donation) के होते हैं और इन सभी का उपयोग अलग-अलग मेडिकल जरूरतों के लिए किया जाता है. आइए जानते हैं किस तरह के मरीजों को होती है ब्लड के किस कंपोनेंट्स की जरूरत होती है.
संपूर्ण रक्तदान सबसे सामान्य रक्तदान है. इस प्रकार के रक्तदान में ब्लड डोनेट करने वाला व्यक्ति एक बार में लगभग आधा लीटर रक्त दान कर सकता है. बाद में रक्त को इसके तत्वों लाल रक्त कोशिकाएं, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स में अलग अलग कर लिया जाता है.
एफेरेसिस रक्तदान के दौरान मशीन की मदद से दानकर्ता की बॉडी से ब्लड के कंपोनेंट्स को अलग करके लिया जाता है. इनमें रक्त कोशिकाएं, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स हो सकते हैं. जिस तत्व की जरूरत होती है उसे रखकर बाकी को दानकर्ता के शरीर में लौटा दिया जाता है. एफेरेसिस रक्तदान में रक्त के तीन तत्वों को लिया जाता है.
प्लेटलेट्स डोनेशन में रक्त से केवल प्लेटलेट्स लिया जाता है. प्लेटलेट्स ब्लड में थक्का जमने से रोकने और चोट लगने पर खून को बहने से रोकने का काम करता है. ऐसे मरीज जिन्हें ब्लड क्लोटिंग की समस्या होती है उन्हें प्लेटलेट्स दिया जाता है. इसके अलावा ऑर्गन ट्रांसप्लांट व कैंसर के मरीजों को भी प्लेटलेट्स देने की जरूरत पड़ती है.
डबल रेड सेल डोनेशन में दानकर्ता से रेड सेल्स लिया जाता है. रेड सेल्स बॉडी के अंगों और टिश्यू में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. रेड सेल्स ऐसे व्यक्तियों को दिया जाता है जिनमें गंभीर रूप से खून की कमी होती है, खासकर दुर्घटना में घायल हुए लोगों में ऐसी समस्या देखी जाती है. इसके अलावा एनीमिया से पीड़ितों को भी रेड सेल्स चढ़ाने की जरूरत पड़ती है.
प्लाज्मा डोनेशन में ब्लड के लिक्विड पार्ट को लिया जाता है. प्लाज्मा में एंटीबॉडी होती है, जो इंफेक्शन से लड़ने में मदद करता है इसके साथ ही यह ब्लड को क्लॉट होने में मदद करता है. ब्लीडिंग रोकने के लिए प्लाज्मा चढ़ाया जाता है.
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