भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टिप्पणियों को बेहद अपमानजनक बताया. NDTV के प्रधान संपादक संजय पुगलिया के साथ इंटरव्यू में हरीश साल्वे ने कहा कि राहुल गांधी की 'मोदी उपनाम' को लेकर की गई टिप्पणियां बेहद अपमानजनक थीं, सार्वजनिक जीवन में रहने वाले किसी व्यक्ति से ऐसे बयान की उम्मीद नहीं की जा सकती.
हरीश साल्वे ने कहा, "यह बात इतनी अहम है, इसके लिए राहुल गांधी को दोषी ठहराया जाना चाहिए या नहीं, यह अलग मुद्दा है, लेकिन बात करने का बेहद अपमानजनक तरीका... आप लोगों पर झूठे आरोप लगा रहे हैं और फिर कहते हैं कि मैं सार्वजनिक जीवन में हूं... हर कोई जानता है, वह कुछ भी कहें, लेकिन जब वह रात को सोते हैं, तो देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते हैं. क्या इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करने की आपकी हैसियत है...?"
साल्वे ने NDTV को बताया, "सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा कि आपने जो कहा, वह गलत था और इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए थी. लेकिन दोषसिद्धि पर रोक लगा दी गई, क्योंकि जब तक उनकी अपील (दोषी ठहराए जाने के खिलाफ) पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक निर्वाचन क्षेत्र को प्रतिनिधित्व नहीं मिल सकेगा, इसीलिए ऐसा किया गया. इसलिए नहीं कि सुप्रीम कोर्ट को लगा कि इस केस में कुछ दम है."
गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने 13 अप्रैल, 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी सभा में मोदी उपनाम को लेकर की गई कथित विवादित टिप्पणी पर राहुल के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था. राहुल ने सभा में टिप्पणी की थी कि 'सभी चोरों का एक ही उपनाम मोदी कैसे हो सकता है?'
इसके बाद केरल के वायनाड से लोकसभा सांसद राहुल गांधी को दोषी ठहराए जाने के तुरंत बाद अयोग्य घोषित कर दिया गया था. उन्होंने इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने कहा कि उनकी टिप्पणियां सही नहीं थीं, लेकिन संसद से उनकी अयोग्यता उनके मतदाताओं को प्रभावित करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता (राहुल गांधी) के बयान ठीक नहीं थे. याचिकाकर्ता को भाषण देने में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी."
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल जज ने जेल में अधिकतम दो साल की सजा सुनाई थी और अगर सज़ा एक दिन भी कम होती, तो राहुल गांधी सांसद के रूप में अयोग्य नहीं होते. ट्रायल जज द्वारा अधिकतम सजा देने का कोई कारण नहीं बताया गया है, अंतिम फैसला आने तक दोषसिद्धि पर रोक लगाने की ज़रूरत है.
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