भारतीय उद्योग जगत के इस्पात जैसे कुछ क्षेत्रों ने यूरोपीय संघ में लागू होने जा रही कार्बन कर प्रणाली के अनुपालन के लिए जरूरी सूचनाएं देने के बोझिल काम को लेकर चिंता जताते हुए सरकार से यह मसला यूरोपीय संघ के समक्ष उठाने का अनुरोध किया है. एक अधिकारी ने कहा कि वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से बुधवार को बुलाई गई एक बैठक में घरेलू निर्यातकों ने यह मुद्दा गंभीरता से उठाया. उद्योग जगत ने कहा कि कार्बन कर प्रणाली की शर्तों के अनुपालन के लिए उन्हें यूरोपीय संघ को उत्पादों से जुड़ी सूचनाएं बड़े पैमाने पर मुहैया करानी होंगी, जो अपने-आप में बोझिल काम है.
यूरोपीय संघ किसी भी उत्पाद को आयात की मंजूरी देते समय कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को आधार बनाने जा रहा है. इसके लिए कार्बन सीमा समायोजन व्यवस्था एक अक्टूबर से लागू होने वाली है. हालांकि, कार्बन कर की वसूली एक जनवरी, 2026 से शुरू होगी. अधिकारी के मुताबिक, उद्योग जगत ने वाणिज्यिक रूप से संवेदनशील जानकारियां भी मांगे जाने का जिक्र किया है. उन्होंने कहा, ‘‘हमने इन सभी बिंदुओं पर चर्चा की। हम उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश कर रहे हैं.''
उद्योग जगत का मानना है कि यूरोपीय संघ को निर्यात किए जाने वाले भारतीय उत्पादों पर इस प्रावधान का प्रतिकूल असर पड़ सकता है. खासकर लोहा, इस्पात एवं एल्युमिनियम उत्पादों में कार्बन उत्सर्जन की वजह से निर्यात पर अधिक असर पड़ने की आशंका है.
आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, एल्युमिनियम एवं हाइड्रोकार्बन जैसे कार्बन-बहुल क्षेत्रों के लिए एक अक्टूबर से उत्सर्जन स्तर के बारे में यूरोपीय संघ को जानकारी देना अनिवार्य होगा और ऐसा न करने पर जुर्माना भी लगाया जाएगा.
इन आशंकाओं को देखते हुए घरेलू निर्यातक सरकार से इस संबंध में यूरोपीय संघ के समक्ष यह मामला उठाने की मांग कर रहे हैं.
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