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ईरान से ब्रिटेन तक, CAA और दिल्ली हिंसा पर भारत के खिलाफ आए ये देश

5 अगस्त 2019 को नरेंद्र मोदी सरकार ने जब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय से ना के बराबर विरोध दर्ज हुआ. यहां तक कि पाकिस्तान की लगातार कोशिशों के बावजूद मुस्लिम दुनिया के तमाम देशों ने भी भारत का समर्थन किया. वहीं, कुछ देशों ने कश्मीर मुद्दे पर ना तो भारत का समर्थन किया और ना ही विरोध बल्कि उन्होंने तटस्थ रुख अपनाए रखा. हालांकि, कश्मीर पर फैसले के बाद जब मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून लागू किया और इसके चलते दिल्ली में हिंसा भड़की तो तमाम देशों की तरफ से प्रतिक्रियाएं आईं.

  • आइए जानते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून और दिल्ली हिंसा को दुनिया भर में किस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है.

  • अब तक नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और दिल्ली हिंसा पर ईरान, ब्रिटेन, तुर्की, पाकिस्तान, मलेशिया, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, अमेरिकी एजेंसी यूनाइटेड स्टेट्स कमिशन ऑन इंटरनेशनल रीलिजियस फ्रीडम (USCIRF), ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (OIC) और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHRC) बयान जारी कर चुके हैं.

  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इंटरवेंशन याचिका तक दायर कर दी है. हालांकि भारत ने इन सबका कड़ा विरोध किया है. साथ ही इन सभी को आंतरिक मामले में दखल नहीं देने की नसीहत दी है.
    ईरान
    अतीत में, ईरान भारत के खिलाफ आक्रामक बयान जारी करने से बचता रहा है. ईरान भारत से अपने संबंध मजबूत करने पर जोर देता रहा है. हालांकि, अमेरिका के प्रतिबंध लगाने के बाद भारत-ईरान के व्यापारिक संबंध प्रभावित हुए हैं. ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह खुमैनी ने दिल्ली में भड़की हिंसा की कड़ी निंदा करते हुए मोदी सरकार की आलोचना की है. उन्होंने ट्वीट किया, 'भारत में मुसलमानों के नरसंहार पर दुनियाभर के मुसलमानों का दिल दुखी है. भारत सरकार को कट्टर हिंदुओं और उनकी पार्टियों को रोकना चाहिए. उन्होंने चेतावनी भी दी कि अगर भारत इस्लामी दुनिया की ओर से अलग-थलग होने से बचना चाहता है तो उसे मुसलमानों के नरसंहार को रोकना होगा.
  • इससे पहले ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने दिल्ली हिंसा पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी. उन्होंने ट्वीट कर कहा था, 'भारत में मुसलमानों के खिलाफ प्रायोजित हिंसा की ईरान निंदा करता है. ईरान और भारत सदियों से दोस्त रहे हैं. मैं भारत सरकार से अपील करता हूं कि वह अपने सभी नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करे.'

  • पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक बयान में कहा, भारत में नागरिकता संशोधन कानून से मची उथल-पुथल को लेकर पाकिस्तान के पक्ष का अंदाजा दिल्ली में हो रही हिंसा से लगाया जा सकता है. अगर स्थितियां खराब होती हैं तो क्षेत्र की अशांति दुनिया पर असर डाल सकती है. भारत को अपने व्यवहार और नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए.
    OIC की क्या रही प्रतिक्रिया?
    पिछले कुछ वक्त से सऊदी अरब और यूएई से अच्छे संबंध होने की वजह से ओआईसी में भारत का प्रभाव बढ़ रहा था. हालांकि, सीएए को लेकर दिल्ली में भड़की हिंसा पर 'ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन' ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा कि भारत में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा चिंताजनक है. ओआईसी ने कहा, हम भारत में मुस्लिम विरोधी हिंसा की निंदा करते हैं, जिसमें कई लोगों की मौतें हुईं और तमाम लोग जख्मी हुए. पीड़ित परिवारों के साथ हमारी गहरी संवेदनाएं हैं.
  • वहीं, अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) ने सीएए को लेकर गृहमंत्री अमित शाह को बैन करने की ही मांग कर दी थी. हाल ही में अमेरिकी आयोग ने नागरिकता कानून पर सुनवाई भी की. इस दौरान ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय ने अमेरिकी पैनल को बताया कि मोदी सरकार के कदम ने लोकतंत्र में शामिल नागरिकता की धर्मनिरपेक्ष परिभाषा को संकुचित कर दिया है. चर्चा के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि खतरा गंभीर है और इसमें बेहद खतरनाक संकेत छिपे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिकी आयोग धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में भारत की रैंकिंग भी कम करने पर विचार कर रहा है.
    तुर्की और मलेशिया ने क्या कहा?
    तुर्की और मलेशिया कश्मीर और नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर भारत को नाराज करने वाले तमाम बयान जारी कर चुके हैं. दिल्ली में हुई हिंसा पर पाकिस्तान के दोस्त तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने हाल में बयान दिया था, 'वर्तमान में भारत एक ऐसा देश बन गया है, जहां नरसंहारों को अंजाम दिया जा रहा है. उन्होंने आरोप लगाया था कि भारत में हिंदुओं द्वारा मुस्लिमों का नरसंहार किया जा रहा है. वहीं, मलेशिया के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले महातिर मोहम्मद ने सीएए की आलोचना की थी. उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम को गैर जरूरी करार देते हुए कहा था कि जब भारत में सब लोग 70 साल से रह रहे हैं, तो इस कानून की आवश्यकता ही क्या थी.

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