भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करते हुए दो ऐसे महत्वपूर्ण ऐलान किए हैं जिससे आम लोगों को काफी राहत मिलने वाली है. ये दो ऐलान कर्जों की रीस्ट्रक्चरिंग यानी उसे लौटाने के नए तौर-तरीके तथा चेक पेमेंट में सुरक्षा से जुड़े हैं.
क्या है कर्जों की रीस्ट्रक्चरिंग
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने ऐलान किया है कि कोरोना संकट को देखते हुए आम जनता के लिए भी लोन रीस्ट्रक्चरिंग की सुविधा दी जाएगी. इसके पहले सिर्फ कॉरपोरेट जगत यानी कंपनियों के लिए ही यह सुविधा थी. यह सुविधा उन लोगों को राहत देने के लिए लाई जा रही है जो कोरोना संकट की वजह से आर्थिक रूप से काफी परेशान हैं.
रिजर्व बैंक ने कोरोना से प्रभावित एयरलाइंस, होटलों और स्टील एवं सीमेंट कंपनियों के लिए भी ऐसी ही कर्ज रीस्ट्रक्चरिंग सुविधा देने का ऐलान किया है.
दो साल के लिए मिलेगा लाभ
इसके तहत कर्जों की नई समाधान योजना पेश की जाएगी जिसका लाभ दिसंबर 2020 तक लिया जा सकेगा. इसके तहत भुगतान की तिथि में बदलाव, लोन की अवधि में बदलाव, ब्याज न चुका पाने पर और लोन देने की सुविधा, मोरेटोरियम की सुविधा आदि शामिल होगी और यह ग्राहक की आमदनी के आकलन के बाद तय की जाएगी. यह सुविधा अधिकतम दो साल के लिए होगी.
बैंकों को इस स्कीम को ग्राहक के आवेदन के बाद 90 दिन के भीतर लागू करना होगा, हालांकि इसे पहले भी लागू किया जा सकता है. जिन कर्जदारों ने मार्च 2020 में मोरेटोरियम की सुविधा की घोषणा से पहले भुगतान में डिफॉल्ट किया था, उन्हें लोन रीस्ट्रक्चरिंग का फायदा नहीं मिलेगा.
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चेक पेमेंट पर सुरक्षा बढ़ाने से भी आम लोगों को फायदा
रिजर्व बैंक ऐसा इंतजाम करने जा रहा है जिससे चेक से जुड़ी धोखाधड़ी करना अब आसान नहीं रह जाएगा. आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को कहा कि चेक से जुड़ी धोखाधड़ी रोकने के लिए बैंकिंग सिस्टम चेक ट्रांजेक्शन में पॉजिटिव पे व्यवस्था की तरफ बढ़ेगा. उन्होंने कहा, 'चेक पेमेंट्स की सेफ्टी बढ़ाने के लिए 50 हजार रुपये और उससे अधिक राशि के सभी चेक के लिए पॉजिटिव पे की व्यवस्था शुरू करने का फैसला किया गया है. वॉल्यूम के हिसाब से करीब 20 फीसदी लेनदेन और वैल्यू के हिसाब से 80 फीसदी लेनदेन 50 हजार रुपये की सीमा के दायरे में होंगे. इसके लिए जल्दी ही गाइडलाइंस जारी की जाएगी.'
क्या है नई व्यवस्था? कैसे रुकेगी धोखाधड़ी?
इस व्यवस्था के तहत बैंक को चेक डिपॉजिट होने से पहले ही पता चल जाता है कि लाभार्थी के द्वारा चेक दिया जा रहा है. इस तरह जब चेक क्लीयरेंस के लिए आता है तो बैंक का अधिकारी फंड ट्रांसफर करने से पहले उसकी डिटेल को क्रॉस चेक कर सकता है. इसकी वजह यह है कि चेक काटने वाला कस्टमर पहले ही इसकी डिटेल बैंक के ऐप में साझा कर चुका होता है. इस तकनीक की मदद से चेक से होने वाली धोखाधड़ी को रोका जा सकता है.
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