सुरक्षा के तमाम एहतियात के बीच 6 जुलाई को दिल्ली के तमाम ऐतिहासिक स्थलों को आम लोगों के लिए खोल दिया गया था. तकरीबन डेढ़ महीने का समय बीत जाने के बाद भी दिल्ली के सभी ऐतिहासिक स्थलों पर पर्यटक दिखाई नहीं दे रहे हैं. दिल्ली के बाहर से आने वाले पर्यटक तो ऐतिहासिक स्थलों पर आ ही नहीं रहे हैं. दिल्लीवाले भी इन ऐतिहासिक इमारतों को निहारने के लिए घर से नहीं निकल रहे हैं. नतीजतन वो ऐतिहासिक स्थल जहां कोविड से पहले टिकटों की मारामारी रहती थी वो अब सूने और बेजार पड़े हैं.
दिल्ली के कुतुब मीनार को ही ले लीजिए. कोरोना महामारी से पहले यहां हर रोज 10 से 15 हजार पर्यटक इसका दीदार करने आते थे. लेकिन मौजूदा वक्त में हालत इतनी खराब है की कुतुब मीनार अपने लिए 100 पर्यटक भी नहीं जुटा पा रहा है. कुतुबमीनार में काम करने वाले और यहां तैनात सुरक्षाकर्मियों को मिलाकर तकरीबन 6 दर्जन स्टाफ कार्यरत है.
यानी जितने लोग क़ुतुब मीनार में काम कर रहे हैं लगभग उतने ही पर्यटक बमुश्किल हर रोज आ रहे हैं. मार्च से अगस्त के बीच में सबसे अधिक विजिटर स्वतंत्रता दिवस के दिन यानी 15 अगस्त पर आए थे, जिनकी संख्या 900 के आसपास थी. लेकिन आम दिनों में जुटने वाली भीड़ का ये मात्र 5 से 10 फीसदी ही था.
जो हाल कुतुब मीनार का है, दिल्ली के बाकी ऐतिहासिक स्थलों का भी वैसा ही हाल है. दिल्ली की एक दर्जन के करीब छोटी बड़ी ऐतिहासिक इमारतों में भी पर्यटकों की संख्या हर रोज 50 से 100 के बीच ही है. आने वाले दिनों में भी इस संख्या के बढ़ने के आसार बेहद कम है. दिल्ली में लाखों की संख्या में लोग कोरोना संक्रमित हुए हैं, ऐसे में अपने घरों से लोग या तो जरूरी काम के लिए निकल रहे हैं या फिर नौकरी करने के लिए.
लॉकडाउन के बाद, यानी कि मार्च से जुलाई के बीच में पुरातत्व विभाग की कमाई एक साथ बंद हो गई थी. लेकिन पिछले महीने 6 जुलाई से ऐतिहासिक इमारतों के खुलने के बाद भी पर्यटकों के इन स्थलों तक ना पहुंच पाने के कारण पुरातत्व विभाग को टिकटों से मिलने वाली राशि में भारी कमी आई है. आने वाले दिनों में भी पर्यटकों की संख्या के बढ़ने के आसार बेहद कम है. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय और राज्यस्तर पर भी बाहर से आने वाले लोग अपने महत्वपूर्ण कामों को निपटाने के लिए ही आएंगे.
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