तेजी से बढ़ती कोरोना महामारी और बड़े शहरों में इलाज के लिए बेड और ऑक्सीजन की किल्लत को देखते हुए अब लोग छोटे शहरों की तरफ भागने लगे हैं। ये काम तेजी से हो सके, इसके लिए जो लोग वहन कर पा रहे हैं, वो एयर एंबुलेंस का सहारा ले रहे हैं। इसके चलते इन एंबुलेंस की मांग भी बड़े पैमाने पर बढ़ने लगी है।
आंकड़ों के मुताबिक, इसी साल मार्च महीने में जहां रोजाना 15-20 लोग एयर एंबुलेंस के लिए कॉल करते थे, वो आंकड़ा अब बढ़कर 250 से 300 के करीब हो गया है। पहले लोग पटना, रांची, लखनऊ जैसी जगहों से दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु इलाज के लिए पहुंचते थे, लेकिन महामारी के चलते मामला उलटा हो चुका है।
इंडिया एयर एंबुलेंस के प्रोपराइटर विनायक सिन्हा ने ‘हिंदुस्तान’ को बताया कि अब लोग वहीं जाना चाहते हैं, जहां नर्सिंग होम उनके किसी परिचित का है। इसके लिए ज्यादातर लोगों ने छोटे शहरों का रुख किया है। अब लोग दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों से नागपुर, रांची, सतना, रींवा, जबलपुर या फिर दूसरे किसी छोटे शहर की ओर जा रहे हैं। उन्होंने ये भी बताया कि देश में कोरोना मरीजों के लिए रिजर्व एयर एंबुलेंस 15-20 के ही करीब हैं। ऐसे में रोजाना 20 से 25 लोगों को ही उनकी जरूरत के मुताबिक पहुंचाया जा रहा है।
सरकारी नियम बना मुसीबत
एयर एंबुलेंस के परिचालन और कोरोना मरीजों को जल्दी अस्पताल पहुंचाने में एक सरकारी नियम मुसीबत बना हुआ है। विनायक सिन्हा ने बताया है कि किसी भी जिले में एयर एंबुलेंस ले जाने के लिए वहां के जिला अधिकारी की मंजूरी चाहिए होती है। महामारी की परिस्थिति में इसमें लगने वाला समय मरीज की हालत पर भारी पड़ता जा रहा है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि ऐसे नियमों को खत्म करते हुए एयर एंबुलेंस को बाकी एंबुलेस की ही कैटेगरी में रखा जाए। मरीज को जल्दी अस्पताल पहुंचाया जा सके, इसलिए इसमें ढील दी जाए।
एयर एंबुलेंस भी दो दिन से पहले नहीं मिल रही
कोरोना महामारी से पीड़ित लोगों को बेहतर इलाज की सख्त जरूरत होती है। ऐसे में एयर एंबुलेंस सबसे प्रभावी माध्यम है, लेकिन इसकी उपलब्धता के लिए भी लोगों को दो दिन का इंतजार करना पड़ रहा है। छह महीने पहले निखिल के परिवार में ही हृदयरोग से पीड़ित उनके ताऊ को साढ़े तीन लाख रुपये में कोलकाता ले गए थे। अब एयर एंबुलेंस के लिए ढाई गुना ज्यादा कीमत चुकाने पर भी तुरंत उपलब्धता नहीं हो पा रही है।
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