कोरोना की कोविशील्ड वैक्सीन की डोज का अंतराल 3 महीने या उससे बढ़ाए जाने को लेकर कुछ लोगों का कहना है कि शायद सरकार ने टीकों की कमी से निपटने के लिए ऐसा किया है। इन कयासों को खारिज करते हुए कोविड वर्किंग ग्रुप के सदस्य एनके अरोड़ा ने कहा है कि ऐसा वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर किया गया है। उन्होंने कहा कि टीकों की कमी से निपटने में इससे मदद नहीं मिलेगी बल्कि यह ज्यादा लाभदायी है। गुरुवार को ही सरकार ने कोविशील्ड के दो टीकों के बीच 12 से 16 सप्ताह तक का गैप रखने का फैसला लिया है। इससे पहले यह गैप 6 से 8 सप्ताह तक का ही रखने की सलाह दी गई थी।
ऐसे में एक सवाल यह भी है कि क्या पहले ही एक महीने के अंतराल पर वैक्सीन लगवा चुके लोगों पर टीका कम असर करेगा? इसका जवाब देते हुए एनके अरोड़ा कहते हैं कि ऐसा नहीं है। एनडीटीवी से बातचीत करते हुए अरोड़ा ने कहा, 'जिन लोगों ने एक महीने या फिर दो महीने से कम में ही दूसरा टीका ले लिया है, उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। उनके शरीर में एंटीबॉडीज का अच्छा प्रोडक्शन होगा।' कोविड वर्किंग ग्रुप की ओर से ही गुरुवार को कोविशील्ड के टीके के गैप को 6 से 8 सप्ताह की बजाय 12 से 16 तक करने की सिफारिश की गई थी। ग्रुप की सिफारिश को कुछ देर बाद ही सरकार ने मान लिया था।
दोनों टीकों के बीच गैप बढ़ाने को लेकर उन्होंने कहा कि ऐसा टीकों की किल्लत के चलते नहीं किया गया। डॉ. अरोड़ा ने कहा, 'यदि हम टीकों में गैप को एक महीने के लिए बढ़ा देते हैं तो इससे क्या फर्क होगा? इससे सिर्फ 4 से 6 करोड़ डोज का फर्क होगा। इसलिए एक महीने की देरी से दूसरी डोज दिए जाने से टीकों की किल्लत की समस्या से शायद ही निपटा जा सके।' उन्होंने कहा कि यह फैसला पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार पर लिया है और इससे लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होगा। बता दें कि कोविशील्ड टीके पर रिसर्च करने वाली संस्था एस्ट्रेजेनेका ने भी कहा था कि कोविशील्ड की दोनों डोज के बीच 12 से 16 सप्ताह तक का अंतराल होना चाहिए।
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