अफगानिस्तान में तालिबान तेजी से रणनीतिक बढ़त हासिल कर रहा है. उसने बुधवार को तीन और अफगान प्रांतीय राजधानियों औरएक स्थानीय सेना मुख्यालय पर कब्जा जमा लिया. अमेरिकी और नाटो सैनिकों की वापसी के बाद देश के उत्तर-पूर्व हिस्सा पर काबिज होने के साथ ही उन्हें अफगानिस्तान के दो-तिहाई हिस्से पर नियंत्रण मिल गया. इस बीच, तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद सुहैल शाहीन ने 'इंडिया टुडे' से स्पेशल इंटरव्यू में अफगानिस्तान में भारत की भूमिका, दोहा वार्ता सहित विभिन्न मसलों पर बातचीत की.
तालिबान के प्रवक्ता से सवाल किया गया, अफगानिस्तान में भारतीयों, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की चिंता है. कंधार में वाणिज्य दूतावास को जुलाई में खाली कराया गया था, अब मजार-ए-शरीफ में वाणिज्य दूतावास को भी खाली करा लिया गया है. ऐसी चिंताएं हैं कि जब तालिबान किसी क्षेत्र में पहुंचेगा, तो भारतीयों को उस क्षेत्र से जाना होगा?
इस सवाल पर सुहैल शाहीन ने कहा, 'कहानी के दो हिस्से हैं. एक हमारा है. हमने बयान जारी किए हैं कि हम अफगानिस्तान में सभी राजनयिकों और दूतावासों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. एक बार नहीं, बल्कि कई मौकों पर हमने यह बात कही है. अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद और अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात के बयान भी थे.'
'और दूसरी भारत की चिंता है. वे (भारत सरकार) उन क्षेत्रों से अपने राजनयिकों को अपनी वजहों और चिंताओं के चलते ले जा रहे हैं. यह उनके ऊपर है. लेकिन जो हमसे जुड़ा था, हम पहले ही अपनी स्थिति साफ कर चुके हैं और दूतावासों में सेवारत सभी राजनयिकों की सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता जता चुके हैं.'
क्या भारत की तालिबान के साथ बातचीत हुई है और हुई है तो किस स्तर पर? सुहैल शाहीन ने कहा, 'भारतीय प्रतिनिधिमंडल के दौरे या हमारे शिष्टमंडल से मिलने की खबरें थीं. मैंने ऐसी रिपोर्ट्स देखीं हैं, लेकिन मैं इसकी पुष्टि नहीं कर सकता क्योंकि मेरी जानकारी के मुताबिक ऐसा कोई वार्ता नहीं हुई. मेरी जानकारी में कोई बैठक नहीं हुई है.'
क्या तालिबान भारत को दोहा वार्ता में शामिल करने पर विचार करेगा? सुहैल शाहीन ने कहा, 'मुझे लगता है कि भारत के लिए निष्पक्षता दिखाना वाकई महत्वपूर्ण है. हमें ऐसी खबरें मिलती रही हैं कि वे (भारत सरकार) सैन्य साजो-समान के साथ काबुल प्रशासन का समर्थन कर रहे हैं, जिसका इस्तेमाल प्रशासन अपने ही लोगों के खिलाफ करता है. हमने लश्करगाह हेलमंद प्रांत में उसी हथियार से बमबारी करते हुए देखा. यह बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत निष्पक्षता दिखाए, उन्हें अफगानिस्तान के लोगों के साथ होना चाहिए न कि उस सरकार के साथ जो थोपी गई हो या जो कब्जे के चलते अस्तित्व में आई हो. यह उन्हें तय करना है कि वे अफगानिस्तान के लोगों के साथ खड़े हैं या विदेशियों की ओर से थोपी गई सरकार के साथ.'
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन से सवाल किया गया, भारत के लिए अलग नियम क्यों? वास्तव में, जब अफगानिस्तान को सैन्य समर्थन की बात आती है तो भारत ने सबसे कम समर्थन किया है. अमेरिका तो पूरी तरह से अफगान सरकार के पक्ष में खड़ा था, लेकिन फिर भी आप उससे बात कर रहे हैं, नाटो सैनिक भी आपके खिलाफ लड़े, और फिर भी आप अंतरराष्ट्रीय समुदाय से बात कर रहे हैं. तो, क्या भारत को एक निकट पड़ोसी के तौर पर दोहा वार्ता का हिस्सा नहीं बनना चाहिए?
ताबिलान प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा, 'अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण और सकारात्मक कदमों, जो किसी भी देश द्वारा किया गया हो, यदि यह अफगानिस्तान के लोगों के लिए है तो हम इसकी सराहना करते हैं. लेकिन, अगर वे (भारत) अफगानिस्तान के लोगों के खिलाफ काबुल प्रशासन की मदद नहीं कर रहे हैं, तो वे हमारे खिलाफ निराधार प्रचार में उनकी मदद जरूर कर रहे हैं.'
सुहैल शाहीन ने कहा, 'मुझे याद है कि भारत काबुल में सरकार का पक्ष ले रहा था, जबकि अफगानिस्तान के सभी लोग देश की मुक्ति के लिए लड़ रहे थे. अब भी, वे (भारत) लोगों के खिलाफ, स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ और कब्जा जमाने वाली ताकतों के साथ हैं. इसलिए उनके लिए यह जरूरी है कि वे अपनी स्थिति (रुख) बदलें.'
तालिबान के प्रतिनिधि और प्रवक्ता के तौर पर आपसे फिर वही सवाल कि क्या तालिबान भविष्य में सभी हितधारकों के साथ बात करेगा और क्या भारत भी उस बातचीत की टेबल पर होगा?
तालिबान प्रवक्ता ने कहा, 'मुझे लगता है कि यह भविष्य की बात है कि वार्ता का हिस्सा बनना है या नहीं, लेकिन फिलहाल मुझे लगता है कि उन्हें (भारत को) अपनी निष्पक्षता स्थापित करनी चाहिए. यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा.'
अन्यथा तालिबान के साथ कोई वार्ता नहीं हो सकती है? काबुल प्रशासन को अमेरिका भी सहयोग देता है?
सुहैल शाहीन ने कहा, 'वे (भारत) काबुल प्रशासन को हथियार मुहैया करा एक तरफ से लड़ रहे हैं और उनका समर्थन कर रहे हैं. अमेरिका हमारे देश से लड़ रहा था और वे हमारे खिलाफ एक पार्टी थे और फिर हमने बात की क्योंकि हम दोनों इस इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अफगानिस्तान मसले का कोई सैन्य समाधान नहीं है. हम एक निष्कर्ष पर पहुंचे और वार्ता के जरिये मसलों को हल करने का फैसला किया. हम शांतिपूर्ण बातचीत से एक समझौते पर पहुंचते हैं.'
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