काशी में कहा-सुना जाता रहा है कि विष्णुपगा गंगा कभी बाबा विश्वनाथ को छूते हुए प्रवाहित होती थीं। काल के प्रवाह ने उन्हें दूर कर दिया। मगर समय चक्र बदला है। अब सदियों बाद वह जनश्रुति सच होने को है जब विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के दिन मां गंगा भी वहां मौजूद दिखेंगी। वह मंदिर गर्भगृह में बाबा विश्वनाथ का पाद प्रक्षालन करेंगी।
बाबा विश्वनाथ से गंगा के सीधे जुड़ाव के लिए एक पाइप लाइन बिछाई गई है। महाश्मशान मणिकर्णिका से सटे ललिता घाट से मंदिर के गर्भगृह तक। जल्द ही इस पाइप लाइन से गंगा जल सीधे बाबा के गर्भगृह तक पहुंचेगा। अब तक मंदिर के सेवादार ललिता घाट से गगरों में जल भर कर लाते हैं जो गर्भगृह के ऊपर बनी टंकी में डाला जाता है। एक पाइप लाइन से गंगा का जल बाबा के गर्भगृह तक आएगा जबकि दूसरी पाइप लाइन से गर्भगृह में चढ़ने वाला दूध और गंगाजल वापस गंगा में समाहित हो जाएगा। जल और दूध को गंगा तक पहुंचाने के लिए बिछाई गई पाइप लाइन का ट्रायल बुधवार हुआ।
पूरब में गंगा द्वार से मंदिर चौक, मंदिर परिसर होते हुए धाम के पश्चिमी छोर तक 108 पेड़ व वनस्पतियां लगाए गए हैं। पेड़ों में बेल, अशोक और शमी को प्रमुखता दी गई हैं। पहले फलदार वृक्ष भी लगाने की योजना थी लेकिन बाबा के भक्तों को बंदरों से बचाने के लिए वह योजना बदल दी गई। निर्धारित दूरी पर पेड़ लगाने के लिए करीब दो फुट व्यास के गड्ढे बनाए गए हैं। इनमें मिट्टी भी भरी जा चुकी है।
विश्वनाथ मंदिर के मुख्य गर्भगृह में नक्काशीदार खंभों के पीछे की दीवार पर साहित्य और पाषाण शिल्प का अनूठा संगम दिखेगा। सूर्यास्त के बाद यह गैलरी बहुरंगी प्रकाश में अनूठी आभा बिखेरेगा। गैलरी के पूर्वी हिस्से में शिव महिम्न स्तोत्र और संध्या वंदन का विधान संगमरमर के पत्थर पर उकेरा गया है। वगैलरी के दक्षिणी हिस्से में संगमरमर से उकेरी गई थ्रीडी आकृतियों में बाबा विश्वनाथ और माता गंगा से जुड़े प्रसंगों को दर्शाया गया है। उन चित्रों के नीचे उस प्रसंग का सार भी अंकित है। गंगा द्वार और मुख्य परिसर के बीच बना मंदिर चौक 30 हैवी लाइट से जगमग होगा। ये लाइटें उत्तर से दक्षिण की ओर पांच कतारों में लगाई जाएंगी। प्रत्येक कतार में छह हैवी लाइट होंगी। इन लाइटों का बेस तैयार करने का काम बुधवार को पूरा कर लिया गया।
विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह के बाहर से ताड़केश्वर और रानीभवानी के शिवालयों तक फासाड लाइटिंग पूरी की जा चुकी है। बुधवार शाम सूर्यास्त के समय उनकी टेस्टिंग भी हुई। उस दौरान परिसर में मौजूद दर्शनार्थी डूबते सूरज की सिंदूरी आभा से दमकते स्वर्ण शिखर को देखकर निहाल हो गए। विश्वनाथ धाम के दोनों ओर बसे मोहल्लों में लोगों को सरस्वती फाटक और पांचों पंडवा की ओर जाने के लिए लंबा चक्कर नहीं लगाना होगा। विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के साथ ही सरस्वती फाटक और नीलकंठ द्वार जनता के लिए खोल दिए जाएंगे।
Comments
Leave Comments