कर्नाटक के प्रस्तावित धर्मांतरण विरोधी कानून में अनुसूचित जाति यानी एससी समुदाय के उन लोगों को आरक्षण के लाभ से वंचित रखने का प्रावधान किया जा सकता है जो दूसरे धर्म को अपनाना चाहते हों। प्रस्तावित कानून के मुताबिक, एक बार धर्मांतरण करने के बाद राज्य सरकार संबंधित व्यक्ति को उसके नए अपनाए धर्म से ही पहचानेगी। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि धर्मांतरण करने वालों को वे सुविधाएं मिलेंगी या नहीं जो अल्पसंख्यक समुदाय को दी जाती हैं।
अनुसूचित जनजातियों को धर्मांतरण के बाद भी आरक्षण के लाभ मिलते रहेंगे क्योंकि वह जनजाति है जाति नहीं। कानून विभाग फिलहाल इस बिल के बिंदुओं पर विचार-विमर्श कर रहा है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवाराज बोम्मई ने बताया कि राज्य सरकार यह बिल कैबिनेट से राय के बाद ही विधानसभा में पेश करेगी। कर्नाटक विधानसभा का सत्र सोमवार से ही शुरू हुआ है और यह दस दिनों तक चलेगा।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने सोमवार को कहा कि जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने वाला मसौदा विधेयक मौजूदा विधानसभा सत्र में पेश किया जाएगा। बोम्मई ने यहां संवाददाताओं से कहा, ''कानून विभाग मसौदा नियम का अध्ययन कर रहा है। राज्य मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद विधानसभा सत्र में इसे पेश किया जागएा।''
हालांकि, यह प्रस्तावित बिल सिर्फ जबरन धर्मांतरण के खिलाफ ही कार्रवाई की बात करता है न कि अपनी मर्जी से धर्म बदलने वालों पर।
विपक्ष द्वारा इसका विरोध किए जाने की संभावना पर बोम्मई ने कहा कि यह जाहिर सी बात है कि किसी भी कानून पर अलग-अलग विचार होंगे, लेकिन सरकार बहस के बाद जनहित में इसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने प्रस्तावित कानून पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि विभिन्न धर्मों के लोग शांति और सद्भाव से अपनी आस्था का पालन कर सकें। विपक्ष के नेता सिद्धरमैया ने इसे एक राजनीतिक कदम करार दिया।
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