logo

  • 21
    10:03 pm
  • 10:03 pm
logo Media 24X7 News
news-details
भारत

EWS कोटे की घटेगी आय सीमा? केंद्र सरकार कर रही है तैयारी, जानें क्या होगा असर

सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को सालाना 8 लाख रुपये की सीमा पर केंद्र सरकार फिर से समीक्षा करेगी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह EWS कोटे की सीमा पर दोबारा विचार करेगा। कोर्ट से इसके लिए चार हफ्ते मांगे भी हैं। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच को सरकार के सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने बेंच को बताया कि सरकार एक समिति का गठन कर वार्षिक आय के मानदंड पर फिर से विचार करेगी।

सुप्रीम कोर्ट में सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले मेहता ने जस्टिस सूर्यकांत और विक्रम नाथ वाली बेंच को बताया, “मेरे पास यह कहने का निर्देश है कि सरकार ने ईडब्ल्यूएस के मानदंडों पर फिर से विचार करने का फैसला किया है। हम एक समिति बनाएंगे और चार सप्ताह के भीतर फैसला करेंगे। हम आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण के मानदंड पर फिर से विचार करेंगे।"

सुप्रीम कोर्ट का केंद्र से सवाल
देश भर में समान रूप से ईडब्ल्यूएस के लिए आय मानदंड तय करने को लेकर केंद्र द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली के संबंध में पिछले दो महीनों में सुप्रीम कोर्ट में कई प्रस्तुतियां आईं। कोर्ट ने ऐसी कई याचिकाओं की जांच की जिनमें वर्तमान शैक्षणिक साल 2021-22 से मेडिकल एंट्री में अखिल भारतीय कोटा सीटों के भीतर EWS के 10 प्रतिशत आरक्षण को चुनौती दी है। 21 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र पर कई सवाल उठाए थे।

 

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मेहता के बयान को रिकॉर्ड में लिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि EWS मानदंड की समीक्षा करने के लिए चार हफ्ते की जरूरत होगी। तब तक नीट ऑल इंडिया की काउंसिंग नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चार हफ्ते का समय देते हुए अगली सुनवाई 6 जनवरी 2022 को तय की है।

ओबीसी वर्ग
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस नियम और शर्त का कोई आधार भी है या सरकार ने कहीं से भी उठाकर ये मानदंड शामिल कर दिए हैं। कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि इसके आधार में कोई सामाजिक, क्षेत्रीय या कोई और सर्वे या डेटा तो होगा? कोर्ट ने कहा कि ओबीसी वर्ग में जो लोग आठ लाख रुपये से सालाना कम आय वर्ग में हैं वो तो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं लेकिन संवैधानिक योजनाओं में ओबीसी को सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा नहीं माना जाता है। सरकार को अपनी जिम्मेदारी संभालनी चाहिए।

आय का अलग पैमाना होना जरूरी नहीं
26 अक्टूबर को, सरकार ने 8 लाख रुपये से कम की वार्षिक आय वाले परिवारों से आने वाले लोगों के लिए 10% कोटा लागू करने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए अपना हलफनामा दायर किया। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आरक्षण के मामलों में, गरीबों की पहचान करने के लिए आय सीमा निर्धारित करने के लिए गणितीय सटीकता नहीं हो सकती है।

सरकार ने कहा कि अलग-अलग शहरों, राज्यों और क्षेत्रों के लिए अलग-अलग आय पैमाना होना जरूरी नहीं है क्योंकि समय के साथ आर्थिक स्थितियां बदलती रहती हैं। पूरे देश में लागू एक व्यापक मानदंड को ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण प्रदान करने के आधार के रूप में लिया जाना चाहिए। सरकार ने कहा कि ये नीतिगत मामले हैं जिनमें अदालतों को दखल देने की जरूरत नहीं है।

विशेष समिति का गठन जरूरी
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार और अधिवक्ता चारु माथुर ने इस मामले में तर्क दिया है कि राज्यों में हर व्यक्ति की आय व्यापक रूप से अलग है।  इसलिए अखिल भारतीय स्तर पर ईडब्ल्यूएस का निर्धारण करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन जरूरी है। जो सावधानीपूर्वक इसकी समीक्षा कर सके ताकि सामाजिक न्याय प्राप्त हो। इस साल के लिए वकीलों ने अनुरोध किया है कि आरक्षण की व्याख्या करने वाले किसी भी मानदंड के अभाव में ईडब्ल्यूएस आरक्षण को प्रभावी नहीं किया जाना चाहिए।

बता दें कि 10% ईडब्ल्यूएस कोटा 103 वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत पेश किया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष चुनौती दी जा रही है।

अगला लेख

You can share this post!

Comments

Leave Comments