लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में चिराग को छोड़ अन्य सभी पांच सांसदों की बगावत के बाद पैदा हुए हालात पर पशुपति कुमार पारस ने चुप्पी तोड़ते हुए इसे मजबूरी का फैसला बताया। उन्होंने कहा कि पार्टी तोड़ी नहीं पार्टी बचाई है।
हाजीपुर से पार्टी के सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे स्व.रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस ने 'हिन्दुस्तान टाइम्स' से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा कि हम घुटन महसूस कर रहे थे। आठ अक्टूबर 2020 को रामविलास पासवान के निधन के बाद पार्टी नेतृत्व ने कुछ ऐसे फैसले लिए जिनकी वजह आज पार्टी इस कगार तक आ पहुंची। पार्टी के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया। पशुपति कुमार पारस को 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान सीएम नीतीश कुमार और उनके कामों की तारीफ करने पर पार्टी नेतृत्व की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। यहां तक कि उन्हें उसी शाम अपना बयान वापस लेना पड़ा था।
लोजपा-जदयू, 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान से ही आपस में भिड़े हुए हैं। इस वजह से जद यू को कई सीटों पर खासे नुकसान का सामना करना पड़ा। जद यू ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पशुपति कुमार पारस ने कहा, 'बिहार में भाजपा, जद यू, लोजपा और राजद, चार ही राजनीतिक दल जाने जाते थे। मेरे भाई के निधन और उनके विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन के बाद पार्टी ने अपना रुतबा गंवा दिया।' उन्होंने किसी भी दल में लोजपा के विलय की सम्भावनाओं से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि पार्टी मजबूती से एकजुट खड़ी है। सिर्फ नेतृत्व परिवर्ततन हुआ है।
उन्होंने कहा कि लोजपा का गठन वर्ष 2000 में हुआ था। पार्टी 2014 से एनडीए में थी, अब भी है और आगे भी बनी रहेगी। सीएम नीतीश कुमार की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा, 'वह विकास पुरुष हैं। उनके कार्यकाल में बिहार का विकास हुआ है। हम बिहार के विकास के प्रयासों में उनके साथ हैं और रहेंगे।' एनडीए सूत्रों का कहना है कि लोजपा ने जदयू को करीब 36 से 40 सीटों पर नुकसान पहुंचाया। 43 सीटें जीतने वाली जदयू तभी से चुपचाप लोजपा से इसका बदला चुकाने में जुटी थी। हाल में लोजपा के दो सौ से अधिक नेताओं ने जद यू ज्वाइन कर ली थी। यहां तक की पशुपति कुमार पारस की भी जदयू सांसद और सीएम नीतीश के करीबी राजीव रंजन सिंह उर्फ लल्लन सिंह से मुलाकात हुई थी।
चिराग से रिश्ते का उल्लेख करते हुए पशुपति पारस ने कहा कि वह हमारे भतीजे हैं। परिवार के सदस्य हैं। मुझे यह कदम सिर्फ पार्टी को बचाने के लिए उठाना पड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान के नेतृत्व में पार्टी में लोकतंत्र समाप्त हो गया था। स्व.रामविलास पासवान के दिखाए रास्ते पर चलती रहेगी। उन्होंने कहा कि रामविलास पासवान के सपनों को साकार करने के लिए ही उन्हें यह कदम उठाना पड़ा। उन्होंने चुनाव के दौरान और पिछले दिनों पार्टी छोड़कर चले गए नेताओं से अपील की कि वे पार्टी में लौट आएं। पशुपति कुमार पारस ने कहा कि वह लोजपा को डूबने नहीं देंगे। पार्टी स्व.रामविलास पासवान के दिखाए रास्ते पर चलती रहेगी।
रविवार को सामने आई थी बगावत
गौरतलब है कि रविवार को पशुपति पारस के नेतृत्व में पार्टी के 6 सांसदों में से 5 सांसदों ने चिराग पासवान के खिलाफ बगावत कर दी थी। सोमवार को चिराग को हटाकर पशुपति पारस पासवान को संसदीय दल का नया नेता चुन लिया गया है। चाचा के इस कदम के बाद लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान बिल्कुल अकेले पड़ गए हैं। बागी सांसदों ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष मानने से भी इनकार कर दिया है। जिन पांच सांसदों ने चिराग से अलग होने का फैसला लिया है उनमें पशुपति पारस पासवान (चाचा), प्रिंस राज (चचेरे भाई), चंदन सिंह, वीणा देवी, और महबूब अली केशर शामिल हैं। अब चिराग पार्टी में बिल्कुल अकेले रह गए हैं।
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